उल्झ गए हम, जाने चहुँ ओर ये फैला कैसा जाल जवाब दो मुझे, है सबसे मेरा एक सवाल जाने क्यों फैल रही भव विध्वंसक शैवाल? गुँज रहा धरती का कण कण सुन रे मानव मेरा एक सवाल ओ मेरे बुज़ुर्गो बतलाओ हमें होगा क्या भविष्य हमारा? उलझे हैं एटम के भँवर में ढूँढो मिलके कोई किनारा ।