सडक

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#सड़क

वो बहुत शर्मीला था! वो बेबाक थी थोड़ी!
रेलवे कालोनी में रहते थे दोनों! लड़की के पिता जी रेलवे में बाबू थे, लड़के के पिता जी टीटी! लड़का बॉयज स्कूल पे पढता था! लड़की कोएड! लड़का बहुत एवरेज दिखता था, पतला दुबला! साइड से मांग निकालता था! लड़की बेहद खूबसूरत, और अपनी हमजोलियों से ज़रा सी बड़ी! ज़रा सी ज्यादा मेच्योर!
‘सुनो तुम पीछे वाली गली में रहते हो न?’ लड़की ने पूछा!
‘क्या? हमसे कह रही हो? हमने क्या किया? हमारा तो रास्ता ही यही है, हम तुम्हारे पीछे थोड़ी न आये!’ लड़के ने चढ़ी साँसों में जवाब दिया!
“लल्लू!” लड़की माथे पर हाथ मारते हुए बोली!
अभी टाइम नहीं है ज्यादा! शाम को मिलोगे, यूकेलिप्टिस वाले पार्क में?”
“क्यों? तुम लड़के बुला के लाओगी? मेरे भी बड़े दोस्त हैं डरते नहीं हैं किसी से!”
शाम को आ जाना सात बजे! हम जा रहे हैं अब! कोई देख लेगा!” लड़की दौड़ के चार कदम आगे हो गई!
‘अपना नाम तो बताओ लल्लू!” लड़की वापस आई!
‘तुम लल्लू ही कह लो, अगर हम तुमको लल्लू दिखते हैं तो!”
लड़की मुस्कुराकर आगे चली गई और गली जहां से मुड़ती थी उसके घर को, वहां से पलट कर देखा और हल्का सा हाथ उठाकर बाय किया!
ये सब कुछ अचानक नहीं हुआ! ये दोनों एक दुसरे को दो साल से ऐसे ही देख रहे थे, रोड के दो तरफ चलते थे बस! और कनखियों से एक दूसर को देखते रहते थे, बात कोई नहीं करता था! इन दोनों का साथ बस उस 100 मीटर की गली तक का ही था! बड़ी ही खूबसूरत गली थी वो, दोनों तरफ रेलवे के लाल मकान जिनमे आगे बड़ा सा गार्डन होता था और बड़े बड़े पेड़ो की छाँव में सड़क सुस्ताती रहती थी, पत्तियां एक ही पैटर्न में सजी रहती थी रोज, जैसे सडक का ज़िरोक्स निकाला गया हो! हमेशा एक सी लगती ही, वही सुकून, वही सन्नाटा और कभी बारिश हो जाए तो वो रोड जैसे जी उठती थी, जैसे कोई इंसान हो, जैसे पुराना कोई साथी किसी पिछले जनम का! कम से कम लड़के के लिए वो सड़क ऐसी ही थी!
वो दोनों छोटे थे पर इतनी समझ थी की ये रोज एक ही टाइम पर एक ही सड़क पर एक दूसरे को रोज़ दिखना प्रोबेबिलिटी के किसी भी नियम से असंभव था! लड़की थोडा धीरे चलती थी, और लड़का उस गली में आने से पहले दौड़ते हुए आता था, फिर अचानक से एकदम एलिगेंस में चलने लगता था!
शाम को लड़के का क्रिकेट मैच था, पर दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था! अपनी काले पट्टे वाली घड़ी घुमा घुमाकर टाइम देख रहा था! सूरज देवता की शिफ्ट ख़तम हुई सात बजने वाले थे, लड़का यूकेलिप्टिस वाले पार्क में गया, लड़की वहीँ बैठी हुई थी अपनी सहेली के साथ! लड़के को आते देख उसकी सहेली ने अपनी कॉपी उठाई और बोली ‘हम जा रहे हैं, हमको देर हो रही है!”
लड़का उस आखिरी बेंच तक चलते हुए गया और बोला ‘क्या हुआ क्यों बुलाया?
“तुमको बताने के लिए कि तुम लल्लू हो एक नंबर!”
“कायदे में रहो समझी!” लड़का बोला!
तुम क्या ये दो साल से बगल बगल चलते रहते हो, ऐसे देखते हो की चाकू मार कर पैसा छीन लोगे! बात करनी है तो बात तो करो, रोज तुम्हरे चक्कर में डांट खाते हैं, स्कूल से लौटने का टाइम है 4, हम पहुचते हैं 5 बजे!
“हम... हमारा रास्ता है वो, हम तुम्हारा पीछा थोड़ी करते हैं कोई, न हमको बात करनी है!” लड़का झिझकते हुए बोला!
“अच्छा तो फिर हमसे गलती हो गई शायद, चलते हैं हम!” लड़की बोली!
“नहीं मतलब, अब आ गई हो तो बोलो!”
हम तुमसे कहने आये हैं कि हमारे पापा का ट्रान्सफर हो रहा है, हम दिल्ली जा रहे हैं एग्जाम के बाद!”
हमेशा के लिए? लड़का बोला
एक ख़ामोशी के बाद लड़की ने बोला...'हम्म! हमेशा के लिए!'
“हमेशा के लिए जा रही हो? जब जा ही रही थी तो बात ही क्यों की? मेरी तो फील्डिंग सेट हो गई अब!” तुमसे बात कैसे होगी?
दिल्ली में कहाँ रहोगी? मतलब घर आओगी ही नहीं?” लड़के ने कई सारे सवाल एक साथ कर डाले!
“घर तो अब वहीँ होगा न जहाँ पापा का ट्रान्सफर होगा! रहूंगी तो बाबुल के आँगन में ही न” लड़की ने मज़ाक करते हुए बोला!
“तुमको मज़ाक सूझ रहा है? यहाँ साले...हम... हम तो मिलते ही अलग हो गए मतलब” लड़के ने गहरी सांस में गुस्साते हुए बुदबुदाया!
हम? हैं? अच्छा! अभी तो तुम मुझे जानते नहीं थे वो सड़क तो बस रास्ता था तुम्हारा, अब ‘मैं’ और ‘तुम’ ‘हम’ हो गए! लल्लू कहीं के!”
लड़की लड़के के तरफ एक कदम बढाती है और उसके हाथ को देखती है इस उम्मीद में कि शायद वो इशारा समझकर उसका हाथ पकड़ ले पर लड़के को लगा कि वो उसकी डुप्लिकेट घड़ी को घूर रही है!
“असली है टाइटन की, थोड़ी पुरानी हो गई है!” लड़के ने हाथ पीठ के पीछे छुपाते हुए बोला!
‘अबे तुम सच में लल्लू हो यार!” लड़की ने प्यार से झुंझलाते हुए बोला!
दस सेकण्ड का पॉज हुआ फिर लड़की ने सीरियस टोन में लड़के को देखा और बोला “देखो मुझे पता है कि जो मै बोलने जा रही हूँ, मतलब जो मैं सोच रही हूँ... इसका कोई सेंस नहीं बनेगा...शायद हमारी बात न हो पाए, न ही मैं तुम्हे चिट्ठी लिख पाउंगी, न ही देख पाउंगी, पर मैं वादा कर रही हु कि मैं आउंगी! इसी सड़क पर वापस तुम इंतज़ार करना बस! तुम करोगे न? मुझे पता है कि बकवास कर रही हूँ पर मैं जानती हूँ कि मैं क्या बकवास कर रही हूँ! और शायद हम बहुत छोटे हैं इस सब के लिए पर हम इतने दिन से...कुछ तो बात होगी मतलब... तुम भी तो आये ही न....” लड़की ने एक सांस में किसी थिएटर एक्टर की तरफ पूरा डायलॉग बोल डाला!” और फिर रुक के, संभल के, लड़के की आँखों में देख कर एक ठहराव के साथ बोला “मैं आउंगी! तुम बस इंतज़ार करना!”
“कब तक?” लड़के ने पूछा!
“जब तक ये सड़क है यहाँ पर और ये पेड़! फ़िल्मी लग रहा है न? मैं आउंगी मगर! देखना तुम!
अभी जा रही हूँ, पापा आ गए होंगे! सुताई हो जाएगी रोमैंस के चक्कर में!”
लड़की तेज़ कदमों में आगे बढ़ी और फिर वापस आयी!
“अबे नाम तो बताओ यार, जब याद आएगी तो कॉपी के पीछे क्या लिखा करूंगी?”
“तुम जब वापस आओगी तब बताऊंगा, तब तक के लिए लल्लू लिख लेना!”
“वो पहली और आखिरी बार था जब वो दोनों मिले थे! क्या है कि कुछ रिश्ते मैगी जैसे नहीं दम बिरयानी जैसे होते हैं, धीरी आंच पर पकते हैं काफी कुछ मांगते है और सबसे ज्यादा मांगते है तो इंतज़ार और ये भी सच है मोहब्बत और नौकरी तुरंत मिल जाए तो क़द्र कहाँ होती है!
“खैर वक़्त ने उस दिन के बाद एक लम्बी जम्हाई ली और सड़क भी कई साल तक सोती रही जैसे थक गई हो बहुत लम्बी चहल कदमी के बाद!”
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“गर्मी की रात! थोड़ी बारिश के बाद हवा में ठण्ड थी! एक घर कि घंटी बजती है! दरवाज़ा खुलता है एक बीस साल का लड़का दांत निकाले, भवें उचका कर बोलता है! “आओ बे चलें मौसम मस्त है, एक एक बीयर मार लें!”
मम्मी! ओ मम्मी! सिद्धू के पापा की तबियत बहुत सीरिअस है, आई सी यू में हैं, मै बाहर जा रहा हूँ!”
आशू ने अपने घर का गेट बंद करते हुए बोला!
“अबे ऐ आशू तुम हमेशा मेरे बाप को क्यों मरवाते हो बे? सिद्धू ने बाइक पर किक मारते हुए बोला!
“अबे काहे से तुम्हारे बाप ही वो अधिकारी है जो हमरी वाली के बाप के ट्रान्सफर लेटर पर साइन किये थे! पर्सनल खुन्नस है, उनको तो हम दिन में तीन बार मार दें हमारा बस चले तो!” आशू ने सिगरेट मुंह के साइड दबाई और माचिस कि तीली बाइक कि हवा से बचाते हुए बोला!
“ओये आशू कायदे में रहो बे, शाम में सरस्वती जी बैठती है जबान पर सच हो गया तो...?
‘रूचि वापस आ जाये, रूचि वापस आ जाये, रूचि वापस आ जाए!”
“अबे ओये क्या बोले जा रहे हो चूतिये!” सिद्धू हँसते हुए बोला!
“अबे क्या पता सरस्वती बैठी हों?” आशू ने आँखे चमकाते हुए कहा!
अमां यार! तुम्हारा फिर वही रूचि, रूचि! बोलना ही है तो ममता कुलकर्णी बोल दो बे! बहुत सही लगती है यार! वो वाला गाना देखे हो “कोई जाए तो ले आये”
“हाँ देखे है तुम्हारी बुवा जैसी लगती है एकदम, और बियर तुम पिलाओगे ससुर! आज हमारे पास पैसा नहीं है!” आशू ने सिद्धू की गुद्दी पर कंटाप मारते हुए बोला!
“रूचि को शहर छोड़े साढ़े चार साल हो गए थे! पर कुछ था कि वो बाकी रह गया था आशू में! ये भी नहीं कि आशू की ज़िन्दगी में लड़कियां नहीं आयीं और उसे किसी से प्यार नहीं हुआ! पर ये जो पहला प्यार होता है न ये दाढ़ी के पहले बाल जैसा होता है जिस पर शर्म भी आये, फक्र भी आये, न मोड़ा जाए, न तोड़ा जाये और न ही छोड़ा जाए! खैर रूचि को न भूल पाने में बहुत बड़ा हाथ था उस सड़क का! जो आशू के आने जाने का रास्ता थी! जब भी गुज़रता तो एक बार को पलट कर देख ही लेता था उस गली में जिस गली में रूचि मुडती थी! उसकी गर्दन में जैसे ये ऑटोमेटेड प्रोग्राम फिट था!
रात के पौने बारह बज रहे हैं, आशू और सिद्धू बियर पी कर घर लौट रहे हैं ! बाइक तीस की स्पीड में एक्स बनाते हुए लहरा रही हैं!
साइड में एक कार खड़ी थी जिसका इंडिकेटर जल रहा था!
“अबे रोक ज़रा देखे क्या हुआ!” सिद्धू ने आशू से बोला!
अन्दर एक परिवार था! आशू ने बाइक रोकी और पूछा “क्या हुआ अंकल? सब ठीक?”
“अरे पता नहीं बेटा, गाडी अचानक से ही बंद हो गई! पेट्रोल भी फुल है!”
“अच्छा! बारिश से शायद ठंडी पड़ गई होगी! चलिए हम धक्का लगाते हैं आप गियर में डालिए! थोडा स्पीड पकड़ने दीजियेगा, तुरंत डाल देंगे तो भकभका के रुक जायेगी! पहले किये हैं न? कि हम करें?”
“नहीं तुम लगाओ धक्का! अंकल जी ने मौके की नजाकत समझते हुए बोला!”
आशू और सुधीर ने मिलकर धक्का लगाया उस सफ़ेद अम्बैस्डर में, दो तीन एटेम्पट के बाद गाडी स्टार्ट हो गई! और सड़क पर झटके खाकर बढ़ने लगी! आशू को लगा कि शायद अंकल जी उतर कर थैंक्यू बोलेंगे और उसके संस्कारों कि तारीफ़ करेंगे! कहेंगे कि ऐसे अच्छे लड़के आजकल बहुत कम है!” पर गाड़ी सीधे ही आगे बढ़ गई!
उस पूरी सड़क पर एक ही खम्बा था जिसकी लाईट जलती थी! बाकी पूरी रोड अँधेरी थी! जैसे ही गाड़ी उस सिंगल खम्बे कि रोशनी में आई! गाड़ी की पिछली सीट से एक हाथ निकला और फिर एक बेहद खूबसूरत सी लड़की ने चेहरा खिड़की से बाहर निकाल कर कहा ‘थैंक्यू सो मच!”
“कुछ लम्हे जैसे कायनात खुद लिखती है! कुछ हुआ कि जैसे वक़्त थोडा स्लो मो में चल गया! सड़क जैसे एक लम्बी नींद के बाद अंगड़ाई लेकर जाग उठी थी!” आशू के लिए ये वक़्त वही लम्हा लेकर आया था!”
एक बहुत जोर सी बिजली कडकी… जैसे कि आसमान फट के दो हो जाएगा, जैसे कि किसी ने आसमान से फ्लैश मारकर इस लम्हे कि फोटो खींची हो! बारिश एक बार फिर से तेज़ हो गई, हवाएं तेज चलने लगी! मोटी-मोटी बूंदे आशू के चेहरे पर यूं पड़ रही थी जैसे कि पानी में चेहरा पिघल रहा हो!
“अबे चलो बे, नहीं पिलाई हो जाएगी घर पर! ओये आशू, अबे बहिरे! चल साले! खड़ा क्या है बे?” सिद्धू खीजते हुए बोला!
सिद्धू कि आवाज आशू के कानों पर पड़ तो रही थी पर दिमाग पर असर नहीं था! जैसे कि वो नींद में हो और कोई उठाने कि कोशिश कर रहा हो!
आशू वही खड़ा रहा उस सिंगल खम्बे की लाईट में तर-बतर और दूर जाती गाड़ी की लाईट को देखता रहा! सिद्धू उसे कंधे से खींच रहा था पर उसके पैर जैसे ज़मीन ने पकड लिए थे!
****आशू वहीँ रहा... चेहरे पर एक हलकी पर बहुत...बहुत गहरी मुस्कान के साथ!***
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अगले दिन सुबह आठ बजे का वक़्त...
एक कंक्रीट वाली छत जो आधी सूखी है आधी गीली! वहीँ पर कैप्सटन की तीन डिब्बियां पड़ी हैं! आस पास कम से बीस पच्चीस सिगरेट बट!
“अबे आशू साले पागल हो गए हो क्या? साले यहाँ कहाँ चढ़ गए? घर में बवाल हो गया है, सब ढूंढ रहे हैं! ये सारी सिगरेट तुम पिए हो? आंटी सोच रही है कि तुम शुक्लाइन की लड़की के साथ भाग गए हो!” सिद्धू ने पेट पकड़ कर हाँफते हुए बोला! पचास फीट ऊंची टंकी चढ़ते- चढ़ते सिद्धू के प्राण मुंह के रास्ते बाहर आ रहे थे!
कौन शुक्लाइन बे? आशू सूरज की रोशनी में आँखे मीचते हुए बोला, जैसे पता नहीं कितने सालों बाद सोकर उठा हो!
सिद्धू - अबे वही... जिसने तुम्हारे चक्कर में फिनायल पी लिया था! जो आजकल पिंटू मेकेनिक के साथ घूम रही है!
आशू- बकचोदी मत करो, हुआ क्या?
सिद्धू- साले हम बकचोदी कर रहे हैं? कल रात से तुम्हारे घर वाले तुमको ढूंढ रहे हैं! तुम्हारे बाप सरऊ हमारे बाप से दंगा करके आये हैं कि हम उनके लौंडे को बियर पीना सिखाये हैं! साले! सारे हरामी काम हमको तुम्हारे दिए हुए हैं! पहली बार सिगरेट से लेकर गांजा सब तुम सिखाये! और तुम्हारे बाप हमारे बाप को टेलर दे रहे हैं! पूरे मोहल्ले में तुम फरार घोषित हो और यहाँ टंकी पर साले पसरे हुए हो, एक करवट और ले लेते न तो नीचे कुत्ते बिल्ली तुम्हारी खोपड़ी की चटनी खा रहे होते!
ये सुनते ही आशू की नजर नीचे गई, अपनी ऊंचाई का अंदाजा होते ही उसकी सारी नींद हिरन हो गई!
“अरे साला!” आशू चौंक गया!
सिद्धू – भूतनी के इतना कोहराम मचा दिए हो और हमको विज्ञान बता रहे हो! घर चलो आज तुमरे बाप चप्पल समेत खा जायेंगे तुमको और जगह बची पेट में तो हमको भी!
आशू हँसने लगा और अपने कपडे झाड़ते हुए बोला... “अबे घुसो बे! डर नहीं लगता हमको! अब तो साला दो थप्पड़ एक्स्ट्रा खायेंगे बाप से! तुमको अंदाजा नहीं है सिद्धू हमारे अंदर क्या केमिकल रिएक्शन चल रहा है! हमारा टेस्ट करवा लो, कोकेन बह रही है सिद्धू कोकेन... बेच दो बे हमारा सारा खून, भोले नाथ कि कसम करोडपति हो जाओगे रे सिद्धू!
ये बोलते बोलते आशू टंकी की रेलिंग पर चढ़ गया!
“अरे जय हो सरस्वती मईया की! हम आशुतोष त्रिपाठी, पुत्र हरनाम त्रिपाठी, गौत्र कश्यप. पूरे होशो- हवास में कसम खाते हैं कि निराजली व्रत रखेंगे हर सोमवार, आज से लेकर जब तक हमारे प्राण चल रहे हैं!”
उस वक़्त आशू आशिकों का भीष्म पितामह लग रहा था, दो पैर एक चरमराती रेलिंग पर, जीवन का कोई मोह नहीं, हाथ फैले, आसमान से बाते करता हुआ, और चेहरे पर पागलपन, प्यार, विश्वास, उन्माद और हर वो भाव जो किसी भी किताब में कहा नहीं गया!
जहाँ आशू खड़ा था वहां से पूरे का पूरा कस्बा दिख रहा था! यूं लग रहा था कि वो छोटा सा क़स्बा साक्षी था इस शपथ का, उस इंतज़ार का, उस मोहब्बत और पागलपन का! जो कल रात पूरा हुआ है!
सिद्धू- “ अबे सरस्वती जी का सोमवार को नहीं होता है शिव जी का होता है! ओये अशुवा मर जाएगा साले, नीचे उतर बक्चोद! ये रेलिंग पहले से ही हिला हुआ है, अरे पगला गया है क्या, कहाँ चढ़ गया! अबे हम मर्डर केस में फंस जायेंगे बे!”
आशू ने नीचे देखा, सिद्धू के ऊपर कूदा... और पानी में फिसलकर बड़ी तेज गिरा! उसके वजन से पतला दुबला सिद्धू भी गिर गया! उसकी कोहनी काफी छिल गई! वो दोनों टंकी के एकदम किनारे पर था जहाँ से मौत सिर्फ कुछ इंच दूर थी... वो सिद्धू को देख कर पागलों कि तरह हंसने लगा और फिर अचानक से एकदम भारी गले से बोला
“अबे सिद्धू वो आ गई, उसने कहा था वो आएगी!
सिद्धू- कौन आ गई बे?
आशू- सिद्धू कभी साँस रोके हो बाल्टी में मुंह डालके? थोड़ी देर में न... सब काला काला लगने लगता है!
सिद्धू- ये सब बकचोदी करने का टाइम नहीं है हमरे पास! जॉइंट फैमिली है और एक ही बाथरूम है!
आशू- “सिद्धू हमारा मुंह साढ़े चार साल से बाल्टी के अंदर था आज बाहर निकला है, हमको साँस लेने दो बे!” वो चिल्लाया!
और ये कहते कहते आशू कि आँखों में पानी उतर आया! फिर वो और भी जोर से चिल्लाया और पागलों कि तरफ हंसने लगा!
“रूचि आ गई! वापस! उसने कहा था आएगी!”
आशू खड़ा हुआ और सिद्धू को बहुत जोर से गले लगाया. पूरी ताकत से!
“वो आ गई! हम सपने में हैं क्या बे?”
“अबे मर जायेंगे बे आशू, सांस रुक रही है!” सिद्धू दबी आवाज में बोला!
सिद्धू- “अबे साले वो रूचि थी कल रात! मतलब...अरे साला!
तो तुम इसीलिए वहां...? अबे बताये काहे नहीं बे?” सिद्धू हैरान होकर बोला!
आशू- “अबे मुंह में ज़बान कहाँ थी बे! हम तो थे ही नहीं सड़क पर, हमको होश ही नहीं था, हमको तो ये भी याद नहीं कि हम यहाँ कैसे आये! और क्या हुआ उसको देखने के बाद!
“हुआ ये सरऊ कि तुम वहां बुत बनके खड़े थे और हम तुम को खींच रहे थे! जो किसी भी समझदार दोस्त का फ़र्ज़ होता है! आधा हम भीग चुके थे और ये हमारी कुटोंस की नयी कमीज जो हमने कल पहली बार पहनी थी तुम्हारे चक्कर में इसकी सत्या पिट गई! सामने से बगल वाले चौरसिया जी आ रहे थे इसलिए हम तुमको छोड़कर कट लिए वहां से! अपना गेट फांदे और अपने कमरे में सो गए और फिर सुबह जब आँख खुली तो हमारे बाप जो तुम्हारे हिसाब से आई. सी. यू. में थे वो तुम्हारे बाप को आई.सी.यू में ले जाने के लिए बाहें चढ़ाये खड़े थे! अगर हम दो मिनट और न उठते तो तुम्हारे बाप हमारे बाप का कॉलर पकड़ लेते! और आशू एक बात बताएं
“यार हमको अब बहुत डर लग रहा है तुमसे! ये रूचि के आने के बाद तुम अब हम हमसे क्या क्या करवाओगे इसका अंदाजा खुद तुमको भी नहीं है! हमारा दिल बैठ रहा है यार! तुम घर चलो एक पीस में! उसके बाद तुम जानो और तुम्हारा काम!”
“ये कहकर सिद्धू आशू को टंकी से नीचे लेकर आया और अपनी स्प्लेंडर पर आशू को घर छोड़कर अपने घर चला गया!
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शाम का वक़्त, यूकेलिप्टिस वाले पार्क में आशू उसी बेंच पर बैठा हुआ है! सामने से सिद्धू धीरे धीरे लंगड़ा कर चलता हुआ आ रहा है!
सिद्धू- दिखी?
आशू- नहीं!
सिद्धू- होठ काहे सूजा है?
आशू- चप्पल... बाप!
सिद्धू- मम्मी भी?
आशू- हम्म! पीठ पर दो तीन! और तुमको?
सिद्धू- टांग ही टांग पेलिन हैं! ऊपर नहीं मारते, कहते हैं चेहरा ख़राब हुआ तो दहेज कम हो जाएगा! तुम हमारी छोडो.... अब करना क्या है?
आशू- घर गए थे उसके... ताला लगा है!
सिद्धू- एक बात बताओ तुम उसको देख कैसे लिए इतने अँधेरे में? हमको तो नहीं दिखी!
आशू- देखे तो नहीं थे ठीक से यार, पर लगी तो वही थी!
सिद्धू- लगी थी... लगी थी?
सिद्धू की आँखें बड़ी और आवाज़ तेज़ होती गई!
अबे साले! तुम्हरे एक ये लगने के चक्कर में इतनी लग गई है हमको और तुमको वो लगी थी! तुम गजब चूतिया हो यार! पिक्चर चल रही है क्या भूतनी के? आशू कसम से कह रहे हैं जो तुम ये जो सारी नौटंकी फैलाए हो न कसम से तुम, हमारा बस चले तो हम न...
तुमको... तुमको... तुमको न...
इतना बोलते हुए सिद्धू दांत पीसते हुए, लंगडाते हुए पीछे गया और चप्पल निकाल के पूरी दम से मारी आशू को!
अबे सिद्धू लग जायेगी! आशू दोनों हाथ से मुंह बचाते हुए बोला
सिद्धू ने दूसरी चप्पल निकाल के मारी!
आशू दोनों ही चप्पल से बच गया! उसने सिद्धू कि दोनों चप्पलें उठाई और वापस बेंच पर आ गया!
थोड़ी देर बाद दोनों वापस साथ बैठ गए और एक टक उस सड़क को देखने लगे!
सिद्धू ने बड़ी ही ठहरी हुई आवाज में बोला
“आशू पता है हमको हमेशा से लगता था कि साला हमारी कहानी के न हीरो भी हम ही है और विलन भी! जो हम फैसले लेते है जिंदगी में वही हमें विलन या हीरो बनाते हैं पर तुम्हारी कहानी में न तुम विलन नहीं हो और हीरो... हीरो तो तुम साले किसी के नहीं बन सकते, हमारी जिंदगी के तो बिलकुल भी नहीं! हमको लगता है कि ये सड़क है जो भी है, इसका कुछ तो है तुमसे! तुमको हम बहुत बचपन से जानते हैं जब भी तुम यहाँ आते हो कुछ अलग हो जाते हो! तुम्हारा कुछ है इस सड़क से, इन पेड़ों से, ये रोड पर पड़ी पत्तियों और यहाँ जमती धुंद से! जब भी हम तुम्हरे घर आकर तुम्हारे बारे में पूछते हैं तुम इसी सड़क पर मिलते हो! पता नहीं क्या मोह है तुमको इस... इस सड़क से! तो बेटा तुम्हारी जिंदगी कि गाड़ी अगर कहीं पहुचेगी न तो इस सड़क से ही होकर पहुचेगी! नहीं तो यही दफ़न हो जाओगे!
आशू- हम्म... अबे सिद्धू लेकिन एक बात है गुरु... कल सरस्वती माता सच में बैठ गई बे! इक बात बताओ तुम्हारे बाप जिंदा है कि निकल लिए? उनका भी तो बोले थे!
सिद्धू- अबे निकल क्या लिए... निकले ही समझो, रिटायरमेंट है आज... उसी की पार्टी है, रिटायरमेंट के बाद आदमी मरे बराबर ही है!
आशू- देखो बेटा दोनों बात सच हो गई! अबे हम ममता कुलकर्णी वाली भी बोल देते तो आज यहाँ हम दोनों के बीच में बैठ के गोल्ड फ्लेक को गांजा बना दी होती!
ऐसा है आशू तुम्हारी बकचोदी तो ख़तम होगी नहीं... हम निकलते हैं, अगर हमारे बाप ने हमको देख लिया तुम्हरे साथ, हमारी खाल में भूंसा भर देंगे वो! हम चल रहे हैं घर में सब मेहमान आ रहे हैं, हमको बहुत काम है!
सिद्धू उठकर जाने लगा!
आशू- “सिद्धू... चप्पल तो लेते जाओ!”
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अगला दिन सुबह के नौ बजे...
आशू के कमरे के रोशनदान से सूरज की रोशनी अन्दर आ रही है ठीक उसके मुंह पर! दो चार अंगडाई के बाद उसकी आँख खुलती है वो अपना रिलायंस का छोटा वाला फोन उठाता है! एक आँख से देखते हुए लॉक खोलता है! फोन में सिद्धू की इक्कीस मिस्ड कॉल और तीन मैसेज पड़े हैं!
आशू एक आँख से मेसेज पढता है!
पहला मेसेज- कॉल बैक करो तुरंत!
दूसरा मैसेज- अबे हरामी फोन उठाओ!
तीसरा मेसेज- “वो रूचि ही थी...मेरे घर पर है... पार्टी में! कल सुबह वापस जा रही है, रिप्लाई करो देखते ही!”
आखिरी मैसेज पढ़ते ही, आशू यूं चौका जैसे बिजली का नंगा तार छू लिया हो! उसने सिद्धू को कॉल बैक किया! पूरी रिंग गई, फोन नहीं उठा! उसने कई बार ट्राई किआ, कॉल नहीं उठा! वो अपने शॉर्ट्स और बनियान में ही घर से दौड़ते हुए बाहर निकला!
“कहाँ, कहाँ चले?” उसकी मम्मी चिल्लाई!
“आ रहे हैं बस दो मिनट में!” ये कहकर आशू धाड़ से गेट बंद करके बाहर निकला! देखा तो सिद्धू घर के बाहर सड़क पर चोरों की तरह खड़ा था!
सिद्धू- “अबे आशू कहाँ मर गए थे बे?”
आशू- “कहाँ है, कहाँ है वो? तुम साले घर आकर बता नहीं सकते थे!”
सिद्धू- “ हम तो कब से खड़े हैं यहीं, तुम्हारे बाप साले एक घंटे से पता नहीं क्या आंतें मुंह से बाहर निकाल के मंजन कर रहे हैं हम इन्तेजार कर रहे थे कि वो अन्दर जाये तो हम तुमको जगाये, कही हमको देख लेते तो इस बार तो हमारा काम लग जाता!
ऐसा बोलते बोलते सिद्धू ने बाइक स्टार्ट की और आशू पीछे बैठ गया!
“अबे आशू ऐसे चलोगे क्या? बनियान में?”
आशू- “नहीं ऐसे नहीं... तुम्हारी टी-शर्ट पहनेंगे! तुम बनियान पहनोगे! रूचि है कहाँ?”
सिद्धू- “उसकी ट्रेन थी सुबह साढ़े नौ की, हमने बातों बातों में पता किया उनके बाप से!”
आशू- तो अब?
सिद्धू- अब क्या... स्टेशन की ओर भगाते हैं! जो होगा वहीँ होगा!
वो दोनों स्टेशन कि और तेजी से भागते हैं!
“सिद्धू तेज चलाओ यार! तेज!”
वो दोनों स्टेशन पहुचते हैं, रेलवे घडी में दस बजकर दस मिनट हो रहे हैं!
आशू के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई हैं! सिद्धू दौड़ दौड़ कर इन्क्वायरी काउंटर पर दिल्ली वाली ट्रेन के बारे में पता कर रहा है! आशू किनारे सिगरेट पी रहा है और इधर उधर देख रहा है!
सिद्धू- “अरे सर! दिल्ली वाली ट्रेन निकल गई क्या?”
इन्क्वायरी- दिल्ली की तो चार ट्रेन है! तुमको किस्मे जाना है!
सिद्धू- ‘साढ़े नौ बजे वाली!’
इन्क्वायरी- ‘साढ़े नौ-वो की कोई ट्रेन नहीं है, टाइम सब चेंज हो गया है! एक मालगाड़ी ने पैसेंजर ट्रेन मार दी है! इस रूट की सब ट्रेन का टाइम बदल गया है! गाड़ी का नम्बर बताओ तो बता पायेगे!
"नम्बर...नम्बर तो नहीं हैं!"
सिद्धू और आशू सारे प्लेटफार्म पर घूम-घूम कर रूचि को ढूंढ रहे हैं! पर वो कही भी नहीं! इन्तेजार करते करते एक बज गया, फिर दो और तीन भी!
शाम हो गई...
सिद्धू- ‘आशू हमको लग रहा है वो लोग चले गए! घर चलते हैं बे! और हमें बनियान में बहुत अजीब लग रहा है! बाप के दोस्त कोई देख लेंगे तो फिर पिलाई हो जाएगी!’
ऐसा नहीं है कि आशू थक गया था या इन्तेजार करने का दम नहीं था पर कुछ गुस्सा सा था उसका नसीब को लेकर, कुछ चिढ थी जिसके चलते उसने मोटरसाइकिल उठाई, टी शर्ट उतारी, सिद्धू को दी और बोला बैठो! वापस चलते हैं!
आशू और सिद्धू ने पूरे रस्ते बात नहीं की! घर करीब आ रहा था, आशू वापस जाना नहीं चाहता था, न ही बात करना चाहता था किसी से! वो सड़क पर रुका और सिद्धू से बोला तुम घर जाओ हम यहीं रुकेंगे! सिगरेट जलाई और टहलने लगा!
सिद्धू गया और थोड़ी देर बाद सामने से वही एम्बेसडर झटके लेते हुए आ रही थी! गाड़ी दस की स्पीड में धीरे धीरे चल रही थी! पंचर थी शायद! आशू उसी सड़क पर खड़ा था! एम्बेसडर वाले अंकल ने पूछा, ‘अरे भईया, पंचर बन जाएगा आस पास कहीं?
आशू की नज़र पीछे वाली सीट पर बैठी रूचि की ओर गई “ उसने उसे देखा, वो टीशर्ट और लोअर में थी! थोड़ी मोटी हो गई थी पर चेहरे पर चमक कमाल थी, इनफैक्ट पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी! क्लिप दांत में फंसाकर अपने बाल बना रही थी, उसने भी आशू को देखा, कोरी सी, बेस्वाद हंसी दी, जिसमे पुरानी पहचान तो थी, पर पुरानी बात नहीं!
“अरे पंचर बनता है क्या कहीं, कोई मेकैनिक मिलेगा?” आपसे पूछ रहे हैं!"
आशू ने रूचि को देखुते हुए बोला, थोडा इन्तेजार कीजिये मैं बुला लाता हूँ, पीछे गली में ही है! आशू ने मेकैनिक बुलवाया! वो पूरे टाइम वही खड़ा रहा, पर रूचि ने उसे नज़रअंदाज कर दिया! बीच में एक दो बार देखा बस! आशू बस किसी एक इशारे के इन्तेजार में था! पर कुछ नहीं हुआ!
थोड़ी देर बाद उसने देखा रूचि एक कागज़ पर कुछ लिख रही है! उसके दिल में उम्मीद कि किरण जागी! गाड़ी का पंचर बन चुका था! गाड़ी बढ़ने को थी.. आशू कि बेकरारी बढती जा रही थी!
गाड़ी थोड़ी दूर बढ़ी, तभी रूचि ने पीछे देखा खिड़की से, अपना हाथ निकाला और एक पर्ची गिरा दी! और बाय किया!
आशू के पूरे शरीर में ख़ुशी कि लहर दौड़ गई!
वो दौड़ा और पर्ची उठाई, एक गहरी सांस भरी, खुद को संभाला, कपकपाते हाथों से पर्ची खोली!
पर्ची पर कुछ नहीं लिखा था, उसने पर्ची पलटी
उस चिमुड़े हुए कागज़ पर पर लिखा था!
‘सॉरी!”
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एक पुराना सा घर, सर्दी का मौसम, घास पर ओस की परतें जमा है! दरवाजे पर लगी लोहे कि टीन से पानी चू रहा है... घर की घंटी बजती है तीन बार...
एक छोटा सा बच्चा कनटोप लगाए, दांत किटकिटाते हुए बाहर निकलता है!
बाहर से आवाज़ आती है “कहाँ हैं बाबा तुम्हारे?”
बच्चे ने कहा “पता नहीं सड़क तक गए होंगे, और कहाँ जायेंगे!”
‘ह्म्म्म!’ बूढ़े ने गहरी साँस ली!
उस बूढ़े आदमी ने अपनी छड़ी उठाई और धीरे धीरे ज़मीन टोते हुए सड़क की ओर चला गया! देखा तो दूर कही धुंद में एक आदमी छड़ी की टेक में धीरे धीरे बढ़ रहा है! कभी पेड़ो को देखता है! कभी आसमान, कभी सड़क! एकदम फुर्सत से! जैसे कि हाल चाल ले रहा हो!
‘क्या भईया, मौसम तो जबर है! हमारी तो नसें जम रही हैं! सुनो! रम पड़ी है थोड़ी सी हमारे पास! बेटा- बहू सब गए हैं बाहर, एक कटोरी काजू के साथ निपटाते हैं!”
उस बूढ़े आदमी ने उस आदमी के पीछे से जाकर बोला!
“अबे सिद्धू पगला गए हो क्या? सुगर बढ़ गया है बहुत! कल रिपोर्ट आई है!” भारी-थकी आवाज़ में आशू ने बोला!
अमां ले लेते है बे एक-एक! अच्छा तुम आधा लेलेना!” सिद्धू ने खांसते हुए, हाँफते हुए बोला! और यही नोक झोंक चलती जा रही थी सड़क पर गूंजती हुई!
अचानक से कोहरे की एक मोटी परत पड़ी सड़क पर, जैसे कि पर्दा गिर गया हो एक नाटक का! जैसे कि किरदार अभी भी जवान थे बस कहानी बूढी हो गई थी!
वो दो बूढ़े जिनके चेहरों पर झुर्रियां की परतें थी, जो जवानी के तमाम किस्से छुपाये हुई थी! पैरो में कपकपी जो कच्ची उम्र के पागलपन वाले सैलाब को आज तक महसूस कर रही थी और आँखों में एक अजीब सी चमक जो एक इंतज़ार को आज भी ओढ़े थी उसके बोझ तले दबी नहीं, उसके पंख लगाए बस उड़ रही ज़िन्दगी के आसमान में, न ख़ुशी, न ही ग़म!
और बूढी वो सड़क, जिस पर पत्तियों कि डिजाइन आज भी वैसी ही थी जैसी साठ साल पहले! सड़क जो हमेशा जवान थी! आशू के लिए, सिद्धू के लिए और उस एक वापस आने वाले के लिए! जो वादा करके गया था कि लौटेगा! जो शायद बेवफा नहीं था बस ज़िन्दगी की सड़क पर समय के साथ बढ़ गया था!
गीले कोहरे में धीरे धीरे आँखों से ओझल होते हुए वो दोनों बूढ़े, यूं लग रहे थे जैसे दूर आसमान में दो परिंदे एक लम्बी उड़ान के बाद अपने घर को वापस जा रहे हों! जैसे ज़िन्दगी उबासियाँ ले रही हो एक गहरी नींद में जाने से पहले!
पत्तियों से छनती ओस की बूँदें गिर रही थी आशू और सिद्धू की झुकी पीठ और गंजे टाट पर...
और कुछ बूंदे गिर रही थी... दो स्कूली बच्चों पर! जो उसी सडक पर कुछ बीस मीटर पीछे चल रहे थे उन दोनों से!
सड़क के दायीं और बाई ओर,
एक दुसरे को देखते हुए...
दुनिया से बेखबर! चुपचाप!

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