भाग 1

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सुबह हो चुकी थी सूरज की किरणे खिड़की से कमरे के अंदर झाक रही थी मनो जैसे कोई चोर है देव बाबू उठे और खिड़की से उगते हुए सूरज को देखने लगे और अपने उन दिनी को याद करने लगे जब उनके जीवन में सूरज डुबता जा रहा था , अभी ये खोह हि थे  की तभी निचे से अम्मा की आवाज़ आई नास्ता बन गया कहो तो लगा दू लाला ,देव बाबू बोले आ रहे हैं नहाने के बाद नीचे गए नास्ता करने । देवबाबू जो अपने ही राज्य में डकार जीले में   कलेक्टर थे , डकार ज़िला बहुत सम्पन था वहां के लोग भी अच्छे भले थे ,चारों तरफ हरयाली खुश्यलि 4,5 उद्योग  , अच्छे स्कूल कॉलेज थे घूमने लायक प्रचिन् जगहे और बहुत कुछ ,शहर में काफी हल्छल् लॉगो को आगे बढ़ने की भूख ।फोन बजने लगा कलेक्टर साहब ने उठाया  चेहरे पे थोड़ी उदासी आ गयी सेनिर पुलिसवाले की बातें सुनकर वो आधा नास्ता ही किए चल दिए । अम्मा बोली नास्ता तो पुरा कर लेते लाला, देव बाबू बोले जरुरी काम है  अम्मा जल्दी लौट आयगे , देव बाबू ने रहीम को आवाज़ लगाई गाड़ी चालू करो। रहीम बाबू का ड्राइवर था  सावला चेहरा करीब पाच फिट लम्बा , स्वास्थ , दिल का अच्छा । कलेक्टर साहब पहुंचे तो सेनिएर् ऑफिसर ने बताया करीब 2 महीने की बच्ची को कोई छोड़ गया था कलेक्टर साहब पूछें बच्ची ठीक है , हा ठीक है ऑफिसर ने जवाब दिया कलेक्टर  साहब की जान में जान आई ,उन्हें  समाचार पत्र में प्रकाशित एक  घटना याद आ गयी , जिसमें इसी तरह एक बच्ची को कचरे के ढ़ेर में छोड़ दिया गया था आधी रात को , सुबह तक कुतो ने उस प्यारी उञान सी बच्ची को नोच नोच कर मार  डाला था हाय ! वो पल उस प्यारी सी बच्ची पर क्या बीती होगी हम सब इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते क्या दुःख आन पड़ी होगी उस बच्ची पर । हाय ! वो दरिंदे पापी ही होंगे जो आंंधी रात को फेक कर चल दिए दरिंदे सबकेसब , तब कहा थे भगवान आए दिन ऐसी घटनाए देव बाबू  को अंदर ही अंदर खाये जाती उनके मन में कई सवाल उठते क्या इन्सनियत खत्म होती जा रही है , क्या ज़मीन पर रेखा खिच देने मात्र से लोग अलग हो जाते हैं और एक दुशरे के दुश्मन बन जाते हैं , क्या देशभ्क्ति धर्म इन्सनियत से बड़ी है । देव बाबू जी नर्म दिल की थे , थोड़ा सवला चेहरा  मगर तेज़ बहुत था , शरीर न ज्यादा पत्तला न ज्यादा मोटा ,लम्बाई भी ठीक थाक ही थी। अपने घर के अकेले ही चिराग थे , पिताजी न थे अम्मा  थोड़ी गुसेयल् मगर बहुत दयालु थी ,जल्दी पिघल जाती थी
तभी एक सेनिएर नर्स बच्ची को कलेक्टर साहब के पास ले आयी , कलेक्टर साहब दरिंदो को कोस रहे थे कैसे कैसे लोग है एक नव्जात शिशु को फेक कर चलें गये जब पालने की औकात नहीं होती तो पैदा क्यों करते है, या इस वजह से की ये लड़की है वो समछ नहीं पाते क्या लड़की होना गुनाह है ,क्यों लड़की लड़कों में इतना भेद भाव । उन्हें यह बात याद आयी कि लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता खास कर गरीबों में क्योकि उनका मानना है कि बेटी  पराया धन होती है , और ये भी है कि इतने पैसे  कहा से आए कि दोनों का कर्च् उठा सके  गरीब और  अगर जो पैसा पैसा है उसे इस्तेमाल करते है तो भविष्य की सोछ्कर करेंगे बेटी चली जाएगी बेटा खाना देगा वाह वाह रे ! रूढ़ सोच ये कब तक हमारे सामज को खोकला करती रहेगी , बाबू लड़कियों की बड़ी इज्ज्त करते थे , वह लड़कियों  को लड़कों से कम न समझते बल्कि उनका मानना है लड़कियों में लड़कों की हिसाब से ज्यादा सहनशक्ती तथा त्याग की भावना, ज्यादा योग्य और कर्मठ है। ये सब यु ही नहीं मानते  थे उन्होंने देखा था कि कई ऐसे फील्ड है जिसमें लड़किया लड़कों को पीछे छोड़ दि है । वह आने वाले समस्या को समझते थे जैसे लड़कियों की जनसख्या लड़कों की जनसख्या से कम थी जिसे सरकार  कई अभियान चला कर लॉगो को जागरूक कि इससे थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ा जरूर । फिर उन्हें इन सब के बीच एक छोटी सी सम्भावना ये नज़र आइकि शायद इस मॉडर्न ज़माने में लड़कों लड़की की भूल हो या मस्ती , तो खुद करते है सजा दुशरो को मिलती है । ये वेस्टर्न कल्चर में न् तो मर्यादा है न् संस्कार , हम आए दिन भारतीय सभय्ता को खोते जा रहे हैं और देखो सारी दुनिया हमारी सभय्ता को अपनाती जा रही है हमें अपनी सभ्यता की अच्छी बातो को जिंदा रखना होगा ।
उन्होने बच्ची को गोद में लिया और चेहरे से चादर हटाई तो जान पड़ा की वे इसे कई जन्मो से जानते हो, एक अज़ीब सा अपनापन ,अनंत सुख मिला । वो उस प्यारी सी बच्ची को नई ज़िन्दगी देना चाहते थे और खुद को भी मगर थोड़ा बहुत अम्मा का डर सत्ताय हुए था कुछ देर सोचने के बाद बोले मुझे इस बच्ची को गोद लेना है , इतना सुनते ही रामदाश चकित रह गये वह जानते थे की साहब की अभी शादी नहीं हुई है और न  ही  कोई महिला मित्र है उन्होंने विश्मय् भाव में कहा साहब आप , आपकी तो अभी  उम्र ही क्या है । रामदास भले आदमी थे और धर्म पर अटूट विस्वास रखते थे , ह थोड़े चापलूस जरूर थे । उस बच्ची की आँखों को देखकर कलेक्टर साहब को अपने प्यार की याद आ गयी वो भी क्या पल थे , नम्रता नाम सुनते ही सहबजादे के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे धीरे धीरे प्यार हो गया। नम्रता गोरे रंग की थी शरीर थोड़ा पतला था आँखे जैसे तालाब हो ,सुंदर सुशिल ऐसी थी कि अगर किसी को एक पल आँखे भर  के  देख ले तो वो दीवाना हो जाए , प्यार का प्रस्ताव तो नम्रता ने ही रखा था देव पहले तो कुछ हिच्किचया जरूर मगर कुछ दिन बीतने के बाद उसे भी प्यार हो गया । वो हसीन लम्हें वो बच्ची देव को उसी की याद दिलाती थी , दोपहर के तीन बज रहे थे नर्स बच्ची को दूध पिला रही थी इधर रामदास बच्ची को गोद लेने के लिए फर्माएसे पूड़ी कर रहे थे । देव साहब को काम में कुछ खास जी लग नहीं रहा था , रात होते है वह बच्ची और एक नर्स के साथ घर पहुंचे  तो जैसे अम्मा की ऊपर पहाड़ टूट पड़ा हो वह हिछक कर बोली ये क्या है लाला , लाला बोले बच्ची है अम्मा बोली वहीं तो किसकी हैं ,लाला बोले मेरी है अम्मा कैसे ,अम्मा सब समझाता हु पहले मै नहा लू ,इधर अम्मा का जी चकोट  रहा था देव बाबू आय और अम्मा को सब कुछ बताया , अम्मा पहले तो बहुत गुस्सा हुई मगर बच्ची को देख कर उसका दिल पिघल गया । और  वह कर भी क्या सकती थी और अकेले रहने से अच्छा था कि पोती के साथ रहे एक नई किलकारी छा गई घर में ,मगर अम्मा को देव बाबू की शादी की चिंता सताय जा रही थी कहीं बच्ची रोकवट न बने । इतने में नर्स बच्ची को  दूध पिला के लेआई , बच्ची की आंखे बड़ी बड़ी थी अम्मा को याद आया जैसे नम्रता की थी अम्मा को समझ में आ गया सब कुछ आज भी इसके जहन में नम्रता  है । मगर नम्रता के धोखा देने के बाद देव बाबू पूरी तरह से टूट चुके थे ,यह चार साल पहले की बात है।

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⏰ Last updated: Jul 08, 2021 ⏰

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