कृष्ण बलदेव वैद की कहानी | मेरा दुश्मन

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वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है. आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज़ मिला दी थी कि ख़ाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है और उस पर कोई ख़ास असर नहीं होता. आँखों में लाल डोर-से झूलने लगते हैं, माथे की शिकनें पसीने में भीग कर दमक उठती हैं, होंठों का ज़हर और उजागर हो जाता है, और बस - होशोहवास बदस्‍तूर क़ायम रहते हैं.

हैरान हूँ कि यह तरक़ीब मुझे पहले कभी क्‍यों नहीं सूझी. शायद सूझी भी हो, और मैंने कुछ सोच कर इसे दबा दिया हो. मैं हमेशा कुछ-न-कुछ सोच कर कई बातों को दबा जाता हूँ. आज भी मुझे अंदेशा तो था कि वह पहले ही घूँट में ज़ायक़ा पहचान कर मेरी चोरी पकड़ लेगा. लेकिन गिलास ख़त्‍म होते-होते उसकी आँखें बुझने लगी थीं और मेरा हौसला बढ़ गया था. जी में आया था कि उसी क्षण उसकी गरदन मरोड़ दूँ, लेकिन फिर नतीजों की कल्‍पना से दिल दहल कर रह गया था. मैं समझता हूँ कि हर बुज़दिल आदमी की कल्‍पना बहुत तेज़ होती है, हमेशा उसे हर ख़तरे से बचा ले जाती है. फिर भी हिम्‍मत बाँध कर मैंने एक बार सीधे उसकी ओर देखा ज़रूर था. इतना भी क्‍या कम है कि साधारण हालात में मेरी निगाहें सहमी हुई-सी उसके सामने इधर-उधर फड़फड़ाती रहती हैं. साधारण हालात में मेरी स्थिति उसके सामने बहुत असाधारण रहती है.

ख़ैर, अब उसकी आँखें बंद हो चुकी थीं और सर झूल रहा था. एक ओर लुढ़क कर गिर जाने से पहले उसकी बाँहें दो लदी हुई ढीली टहनियों की सुस्‍त-सी उठान के साथ मेरी ओर उठ आई थीं. उसे इस तरह लाचार देख कर भ्रम हुआ था कि वह दम तोड़ रहा है.

लेकिन मैं जानता हूँ कि वह मूजी किसी भी क्षण उछल कर खड़ा हो सकता है. होश सँभालने पर वह कुछ कहेगा नहीं. उसकी ताक़त उसकी ख़ामोशी में है. बातें वह उस ज़माने में भी बहुत कम किया करता था, लेकिन अब तो जैसे बिलकुल गूँगा हो गया हो.

उसकी गूँगी अवहेलना की कल्‍पना-मात्र से मुझे दहशत हो रही है. कहा न, कि मैं एक बुज़दिल इंसान हूँ.

वैसे मैं न जाने कैसे समझ बैठा था कि इतने अर्से की अलहदगी के बाद अब मैं उसके आतंक से पूरी तरह आज़ाद हो चुका हूँ. इसी ख़ुशफ़हमी में शायद उस रोज़ उसे मैं अपने साथ ले आया था. शायद मन में कहीं उस पर रोब गाँठने, उसे नीचा दिखाने की दुराशा भी रही हो. हो सकता है कि मैंने सोचा हो कि वह मेरी जीती-जागती ख़ूबसूरत बीवी, चहकते-मटकते तंदुरुस्‍त बच्‍चों और आरास्‍ता-पैरास्‍ता अलीशान कोठी को देख कर ख़ुद ही मैदान छोड़ कर भाग जाएगा और हमेशा के लिए मुझे उससे निजात मिल जाएगी. शायद मैं उस पर यह साबित कर दिखाना चाहता था कि उससे पीछा छुड़ा लेने के बाद किस ख़ुशगवार हद तक मैंने अपनी ज़िंदगी को सँभाल-सँवार लिया है.

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⏰ पिछला अद्यतन: Aug 08, 2022 ⏰

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