मार्गशीर्ष का महीना स्वयं में सम्पूर्ण का प्रतीक था, देव मास कहलाता था, पर शायद भाग्य ने अभी मार्गशीर्ष को ये बोध नहीं करवाया था कि उसको सम्पूर्ण बनाने में , एक घटना का घटित होना शेष है ।
मिथिला - हिमालय के चरण स्पर्श करता, प्रकृति द्वारा रचित एक सुन्दर राज्य। दूर से देखो, तो ऐसा लगता था मानो, यदी इश्वर एक चित्रकार हैं तो मिथिला उनका सबसे कामयाब चित्र। और इसी चित्र पर रेखांकित हुयी वो प्रथम भेंट। हाँ, वही प्रथम भेंट, जो हर युग में होती है, हर कल्प में होती है ! कभी यमुना तो कभी गंगा के तट पर, किन्तु आज अवसर मिथिला को प्राप्त हुआ था।
"आपकी पूजा की थाली तैयार है दीदी!"
उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति पूजा की थाल सजाये अपनी सीता दीदी के सामने पहुंची।
मिथिला में आठों प्रहर बस एक ही नाम गूँजता था,"सीता"। वही सीता, जो मिथिला के मस्तक पर सौभाग्य का तिलक थीं। वही जानकी जिनमें राजर्षि जनक के प्राण बसते थे । वहीँ वैदेही , जिनके होने मात्र से , सब कुछ स्वतः ही ठीक हो जाता था।
वही भूमिजा, जिनका स्वयंवर आयोजित हो चुका था और देश विदेश के वीर योद्धा, शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने, जनकपुर पहुचे थे।
सदा प्रसन्नचित्त और धीरमती रहने वाली सीता , आज कुछ खोयी सी थी और ये बात, उर्मिला को साफ़ समझ आ रही थी।
पूजा का समय निकट जानकर, उर्मिला ने कुछ ना बोला और तीनों बहनो संग वाटिका की ओर प्रस्थान कर गयी।"आप ठीक हैं?"
मांडवी और श्रुतकीर्ति के कुछ आगे बढ़ जाने पर, सही मौका जान, उर्मिला ने पूछ ही लिया ।
"आज से पहले, ये प्रश्न कभी नहीं किया तुमने उर्मिला?"
"आज से पहले, आप भी ऐसी उदास नहीं दिखी मुझे कभी !"
" उदास? नहीं मैं उदास नहीं हू। बस मन थोड़ा अशांत है।"
"किन्तु क्यु दीदी? क्या आपको स्वयंवर स्वीकार नहीं? मैं पिताजी से बात करूंगी। आपकी...."
"अशांत मन सदा आपदा का नहीं, अज्ञात का प्रतीक होता है, उर्मिला।" सीता ने अपनी प्रिय बहन को रोकते हुए कहा।
"किन्तु-"
"आप दोनों बातें ही करती रहेंगी?" दूर से श्रुतकीर्ति ने आवाज लगायी और वार्तालाप को छोड़ सभी ने गौरी मंदिर में प्रवेश किया।
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सिया के राम
FanfictionCompilation of One shots from the life of Siya-Ram! The duo, which makes the core of the much loved epic, Ramayan. Though imaginary, the stories are placed around true events and circumstances as mentioned in our scriptures. Come, experience, Siya...