सरकारी दफ़्तर... नदारद अफ़सर.. धूल भरी फाइलों की गंध, जैसे सब के सब वर्षों से तपस्या मे लीन. टर्किश टॉवेल का लबादा ओढ़े खाली कुर्सियाँ, और इन कुर्सियों के सर पर सूफ़ियाना अंदाज़ में घूमते पंखे, अलग अलग अंदाज़ मे जाने क्या गा रहे हैं. हर एक टेबल पर काँच के पेपर वेट, जैसे फाइलों ने शिवलिंग की स्थापना की हो, ध्यान के लिए. अपने अपने स्वामी की प्रतीक्षा मे उन्घति कुर्सियाँ, ताक रही हैं दीवार घड़ी की ओर.. कब इसकी सुइयाँ, एक दूजे मे विलीन हों और कब उनके स्वामी प्रकट हों इन फाइलों का उद्धार करने..