अध्याय 4

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कुछ सालों बाद,
मोबाइल की रिंग टोन से आंखें खुली तो गुस्से से मोबाइल स्क्रीन की तरफ देखा। मेरी सहेली मीना का नाम देखकर लेटे हुए ही मोबाइल कान पर लगाया और पूछा, ,"क्या है?"
वो दूसरी तरफ से बोली, "तू अभी तक सो रही है?" उसकी शक्ल तो नही देख सकती थी लेकिन उसके बात करने के तरीके से समझ गई कि वो अच्छे मूड में नहीं है। इसलिए बोली, "और क्या करूं?"
"तू भूल गई क्या? आज रिजल्ट आ गया।" जैसे ही उसने बोला मैं हड़बड़ा कर बैठ गई, "क्या?"
"हां"
"ठीक है। मैं इंटरनेट पर चैक करके बताती हूं।"
"मैं इन्तज़ार कर रही हूं। जल्दी बता।" उसके इतने सुनते ही फोन काट दिया और लेपटॉप उठाया और रिजल्ट चैक करने लगी। पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ बदल गया। जहां पहले हर घर में एक फोन होता था उसकी जगह मोबाइल ने ले ली। अब तो हर किसी के पास अपने पर्सनल मोबाइल है। जहां पहले रिजल्ट अखवार में आते थे‌। अब हर कोई आॅनलाइन देखता है।
साइट चालू करके रिजल्ट देखा और मीना को फोन लगाया। "यार, दोनों पास हो गए है। अब क्या करना है?" मैंने पूछा।
"अब जाॅब ढूंढनी है और क्या? वैसे काॅलेज वाले कैप्स का अरेंजमेंट कर रहे हैं।" उसने बोला।
"अच्छा जी, चल पहले वहीं टाॅए करते हैं।" मैंने बोला।
"उससे पहले पार्टी पास होने की।"
"ओके, कहां आना है?"
"मैं बाकी से भी पूछ लेती हूं फिर बताती हूं।"
"नो प्राब्लम"
"वैसे कार्तिक भी बोल रहा था तुझसे मिलने के लिए।"
"यार, मेरे को एक बात बता। उसके पास मेरा नम्बर भी है तो वो मुझसे ना बोल कर तुम लोगों से ही क्यो बोलता है।"
वो हंसते हुए बोली, "क्योंकि वो डरता है तुझसे।"
मैं हंसते हुए बोली, "क्यो? मैं चुड़ैल हूं जो उसको का जाउंगी।"
"चुड़ैल होती तो वो तुझको क्यो पसंद करता? खैर जाने दे मेरा काम था तुझको बताना बता दिया। क्योंकि बाद में मत बोलियों कि नहीं बताया।"
"नहीं बोलूंगी। और सब से पूछ कर बता।"
"काॅल कटेगी तभी बताऊंगी ना।" उसके इतने कहते ही मैंने काॅल काट दी।

कुछ दिनों बाद, काॅलेज में जाॅब इन्टरव्यू का कैप्स शुरू हो गया। सभी ने इन्टरव्यू दिए। सभी का किसी ना किसी कंपनी में शैलक्सन हो गया। यहां तक की मेरी भी जाॅब फाइनल हो गई लेकिन दूसरे शहर में जाना था। सब एक दूसरे को बधाई दे रहे थे पर मैं उदास थी।
बाहर आकर पापा को काॅल की और बोली, "पापा दिल्ली में जाॅब मिल रही है।"
"तो इसमें पूछना क्या है? तू हां कर दे। वैसे भी यहां अच्छी कंपनी नहीं है।"
"ओके" पापा से बात करके मैंने हां कर दी। पहले 6 महीने टैनिंग टाइम था।

घर आकर मम्मी और माया को बताया तो वो भी खुश थे। मम्मी बोली, "अच्छी बात है। तेरी बुआ भी वही रहती है तो तुझको दिक्कत भी नही होगी रहने की। तेरी मौसी को अभी फोन लगाती हूं।" कहकर के मम्मी ने बुआ को फोन लगा दिया। मम्मी ने बुआ को बताया तो वो बहुत खुश हुई।
मम्मी मेरे हाथ में फोन देते हुए बोली, "तेरी बुआ तुझसे बात करने को कह रही हैं।"
मैंने फोन हाथ में लिया और बोली, "बुआ नमस्ते। कैसी हो?"
"ठीक हूं। और तेरी जाॅब के लिए बधाई।" बुआ बोली।
"थैंक्स। और आप बोलती थी ना कि तू आती नहीं है। अब रहने के लिए आ रही हूं। तैयार रहना।" मैंने हंसते हुए कहा।
वो भी खुश होकर बोली, "तू आ तो सही। हम तैयार ही है।"

एक हफ्ते बाद, हम सब बुआ के घर के निकल गए। 3 घंटे बाद, टैक्सी बुआ के घर के बाहर रूकी।
कविता ने दरवाजा खोला। मम्मी और पापा को नमस्ते की। मेरे और माया को बोली, "हैल्लो दीदी, कैसे हो?"
"बढ़िया, तुम बताओ।" मैंने कहा। "मैं भी बढ़िया"
रमन भी बाहर आया। उसने मम्मी पापा के पैर छुए और सामान टैक्सी से उतारने में मदद की।
अब हम लोग अन्दर आए। मैंने और माया ने बुआ से नमस्ते की। मैं बोली, "बुआ, आपकी काॅलोनी कितनी बदल गई? और आपका घर भी।"
बुआ हसंते हुए बोली, "हां तू बहुत सालों बाद जो आती है।"
माया मुझे चिढ़ाते हुए बोली, "बुआ, अब इसको यही रख लो। अब वो कमरा सिर्फ मेरा ही रहेगा।"
मैं मुंह बनाते हुए बोली, "क्यो? तेरा कैसे हो जाएगा? मैं छुट्टियों में जो आया करूंगी।"
सब हंसने लगे। मम्मी बोली, "ये दोनों कभी नहीं सुधरेंगी।"
"माया और मैं एक दूसरे को देखते हुए, हंसते हुए बोले, "ऐसे कैसे सुधर जाएंगे।"
कुछ देर ऐसे ही बात करने के बाद मम्मी पापा और माया वापस घर को लौट गए।
मैं कविता के साथ रूम में रहने वाली थी। कविता ने मेरी समान लगाने में हेल्प की।
रमन, कविता और मैंने अगले दिन घूमने का प्रोग्राम बनाया। शाम को फूफा जी भी घर पर आ गए। हम लोगों ने एक साथ टीवी देखा।

अब मैं इस शहर में आ गई थी। बस एक बार वेदान्त से मिलना था। इतने सालों बाद भी उसको नहीं भूल पाई थी। जानती थी उसकी शादी हो गई होगी फिर भी एक बार तो मिलना था।



  अनभूला प्यार (Completed)Where stories live. Discover now