"मोहब्बत ऐसी निभाउंगा, ज़माना गवाही देगा मेरी वफ़ा-ए-मोहब्बत का"
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यह प्रेमकहानी है राजनैतिक मसलों से तंग अलग अलग मुल्क में रहने वाले दो लोगों की। एक ज़िंदादिल है तो वही दूसरा अपने करियर को लेकर फॉकस्ड और पैशनट्। दोनों के मुल्क अलग है, ख़्वाब अलग है, एम (aim) अलग है और मंज़िले भी। अलग अलग राह पर चलते हुए अपने एम की कुर्बानी दे कर एक ही मंज़िल पर मिल पाएंगे कभी? सरहद पार रहने वाला शख्स कैसे मिलता है? या मिले बिना मोहब्बत हो जाती है? क्या उनकी मोहब्बत को मुकम्मल जहाँ मिलेगा? जानने के लिए पढ़े फिक्शन कहानी "सरहद पार"।