Chapter 1

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टन-टन घंटी बज उठी। सभी बच्चे अपने-अपने बस्ते उठाकर कक्षाओं से इस कदर शोर करते हुए बाहर निकलने लगे मानो किसी पिंजरे से छुट कर आ रहे हो।

दिनभर की थकावट और बस्ते के वजन से दबे होने के बावजूद भी जिस तरह उनके पैर उठ रहे थे उससे प्रतीत हो रहा था मानो कोई जादुई शक्ति उन्हें अपनी ओर खींच रही थी।

वास्तव में था भी ऐसा ही किसी को खेल के मैदान तो किसी को चाट की दुकान अपनी और आकर्षित कर रही थी तो कोई घर पहुँचने की जल्दी में था।

सभी बच्चे दो-दो, तीन-तीन की टोलियों में बँटे हुए हँसी-खुशी से चल रहे थे। इनके चेहरे की रौनक और प्रफुल्लता के बीच एक चेहरा ऐसा भी था जिसे देख कर लगता था इन सब की मुसीबतें इसी एक चेहरे पर आकार सिमट गई हैं।

इस कदर अकेला जाते हुए देख कर आश्चर्य हुआ और प्रश्न उठा कि क्या उसका कोई साथी नहीं था और ऐसी कौन सी बात थी जो परेशान कर रही थी?

पर ऐसी बात नहीं थी - यह वह लड़का था जो सिर्क पढाई में ही नहीं वरन् अपने विद्यालय की हर छोटी-बड़ी गतिविधि में सदैव अव्वल आता था। कर्म के अनुरूप ही इसका नाम था अजय - किसी विद्यार्थी में भी इसका सामना करने का साहस नहीं था - सब इसका आदर करते थे।

शहर के ख्याति प्राप्त साइंस ऑफिसर का पुत्र विजय इसका पक्का मित्र था। शायद ही कभी इनमें अनबन हुई हो। दोनों का अधिकतर समय साथ ही व्यतीत होता था। खेलते वक्त पाँव में चोट आने की वजह से पिचले दो दिन से स्कूल नहीं आ रहा था। अजय घर जाकर मिल आता था।

अजय जब तीन महीने का था तब ही उसके पिता वतन के लिए युद्ध में लड़ते हुए मारे गए थे। माँ जैसे-तैसे कर अजय को पढ़ा रही थी और वीरता से भरी कहानियाँ सुना-सुना कर अजय के बाल-मन को पायलट बनने को प्रोत्साहित कर रही थी कारण उसके पिता का यही एक सपना था जिसे वे पूरा नहीं कर पाए।

अभावों में पलने वाला अजय अमीरी की गोद में पलने वालों के लिए एक ऐसा प्रश्नचिन्ह था जिसे काँटों में भी फूलों का आभास होता था और जो हर छोटी से छोटी वस्तु को भी गहराई से परख कर उचित मूल्य आँकने की शिक्षा पा चुका था।

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