क्या तुम्हें.....

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क्या तुम्हे फिर महसूस होगा, लफ्जों में खुद को जो हम कह जाएं?
सर-आंखों पर तुमको बिठा दें, आंखों मे आंसू तेरे फिर ना आए....

दीवानगी की हद मेरी देखो, बढ़ते-बढ़ते यूं बढ़ गया है,
बेचैनियों का आलम है जो ये, दर्दों का मंज़र दिल से ना जाए....

क्या थी खता क्या गुनाह था हमारा, हमको सजाएं ये जो मिली है?
ना मिल सके हम ना दीदार हो अब, ख़्वाबों में भी तेरा चेहरा ना आए....

तुमसे बिछड़ कर ना हम जी सकेंगे, तुम्हें देखे बीन है ना मरना गवारा,
मुकम्मल ही ना हों ये रस्में हिज़र की, थम जाए या ये पल ही ना आए....

तसव्वुर (Urdu Poetry)Where stories live. Discover now