Article : मेरी माँ

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रंग गोरा, कद लंबा ,आप रूप सुंदर, मगर उससे भी बढ़कर दयावान और सीधी, ऐसी थी मेरी माँ, सब लोग कहते हैं, पर मुझे याद क्यों नहीं ? वही कुछ 4 साल का था मैं जब माँ गुज़र गई| दुर्भाग्य की बात तो यह है कि ना माँ की कोई तस्वीर है और कितना भी मैं प्रयास कर लूँ मुझे माँ का चेहरा याद नहीं| और हो भी तो कैसे, मैं तो बहुत छोटा था तब|

अपनी चिंता किए बिना सिर्फ दूसरों के बारे में सोचती थी और सब का ख्याल रखती थी| कई बार तो ऐसा होता कि गुस्से से बाबूजी मिट्टी का चूल्हा तोड़ दिया करते थे लेकिन माँ कुछ नहीं बोलती थी, तुरंत नया चूल्हा बनाती और उसी कच्चे चूल्हे पर वह खाना बनाकर खिलाती|गाँव से पड़ोस की आई औरतों को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई और अलग-अलग तरह के अचार बनाना सिखाया करती थी| कोई अगर कुछ मांगने आता तो कभी मना नहीं करती| यहाँ तक कि जब मायका जाया करती तो वहां भी 6 महीने से ऊपर का मसाला सिलवट पर खुद से कूटकर तैयार करके रख आया करती थी| पता नहीं इतना कुछ कैसे करती थी माँ और फिर भी उफ़ तक ना करती| सब कुछ मैंने दूसरों के मुँह से सुना है| काश मुझे भी याद होता कि मेरी माँ कैसी दिखती थी|

एक अच्छी बेटी, बहन, बहू और पत्नी होने के साथ-साथ  वो सबसे अच्छी माँ थी| लोग कहते हैं, जब मैं पैदा हुआ था तब गोल-मटोल, सुंदर और बेहद गोरा था और मेरी माँ को लगा कि कहीं मुझे बुरी नज़र ना लग जाए इसलिए वो 6 महीने तक घर से निकली ही नहीं| और इतना ही नहीं, मेरे नाक में खुदसे सुई से छेदकर काला धागा पहना दिया| भला ऐसा कौन कर सकती है? एक माँ ही कर सकती है अपने बच्चे के लिए और उन 6 महीनों में अपना बिल्कुल ख्याल नहीं रखा माँ ने| जब 6 महीने बाद वो घर से निकली तो उसके पूरे शरीर पर घाव था| ओ माँ! मेरी माँ| साक्षात ममता की मूरत थी| सिर्फ़ एक बार, एक झलक, धुंधली ही सही अगर मिलती मुझे तो मैं अपने सीने में बसा लेता वो तस्वीर| तरस गया हूँ कि कभी माँ की गोद में सिर रखकर, बेफ़िक्र होकर सोता और माँ बड़े प्यार से बाल पर हाथ फेरती|

-by Shivani Gautam

The Hideouters : Volume 1Where stories live. Discover now