भाग २: शादी

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मेरी कहानी के पहले भाग में आप लोगो ने पढा कि किस तरह मेरी भाभी की शरारत के कारण मुझे पूरे दो दिन लड़की बनकर घर के काम भी करने पड़े और नाचना भी पड़ा! गर्लफ्रेंड के हाथो ब्युटीपार्लर मे सजना संवरना भी पड़ा! मगर जब यह दो दिन खत्म हुये तो इस विजय के अंदर एक विजया समा गयी। न जाने कब बाहर निकलने को मिलेगा इस इंतजार भरी आस के साथ। अब आगे –

उस घटना के बाद मेरा और भाभी का रिश्ता दिलों की प्यारी करवटो को नजदीक ले आया था। हँसी-मजाक, मस्ती से खुशियों का तूफानी माहौल था। एक माह बाद एक दिन अचानक भाभी ने मुझसे पुछा फिर से लड़की बनोगे? मैं विस्मीत था मगर लड़की भी बनना चाहता था!

मैं : (शरमाते हुये) हाँ— प– प– पर— क– क– कैसे भाभी?

भाभी: वो तुम मुझ पर छोड़ दो मगर इस बार लड़की की आवाज की भी प्रैक्टिस करो।

मैं : (लडकी की आवाज में ) उसकी जरुरत नही है भाभी जी! मैं तो लडकी ही हूँ!

(और हम दोनो खिलखिलाकर हँस पडे)

तीन दिनों बाद भाभी ने मेरी माँ से कहा कि उनकी सहेली के बहन की शादी है। वो वहाँ से अपने मायके जाना चाहती है। और माँ से भी साथ में आने का आग्रह करने लगी। माँ ने इनकार किया तो कहने लगी फिर आप विजय को मेरे साथ भेज दो।

माँ ने कहा, "विजय तुम्हारे साथ आयेगा तो ले जाओ।"

मुझे छुट्टियाँ तो थी पर मैं जाना नही चाहता था। पर मेरी बात यूं ही मान जाती तो वो भाभी कैसे? आखिर में मैं राजी हुआ।

दुसरे दिन हम एक हफ्ते के कपड़े भर के निकल पड़े। ऑटो मोहन नगर के हमारे दूर के चाचा के घर के आँगन मे रूकी। वो चाचा भोपाल में रहते थे। साल मे एकाध बार ही आते थे! हम ही मकान की देखभाल करते थे। ताला खोलकर हम अंदर आये। भाभी ने कुछ झाड़ू वगैरह मारना शुरू किया। १० – १५ मिनट बाद वहाँ मेरी स्नेहा २ बड़े से बैग लेकर वहाँ आयी। और भाभी से पूछने लगी कि जब स्टेशन पर मिलने की बात हुयी थी तो यहाँ क्यों बुलाया? और ये मेकअप किट क्यों मंगाया? (अब मुझे पता चला कि भाभी ने ही स्नेहा को बुलाया था।)

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