कौन हो तुम प्रिये कहां से आयी हो मेरे मन-मन्दिर के उजराये शयन में देख तुम्हारी आभा हो गया हूं, मैं मंत्रमुग्ध न जाने अब, कब आयेगी मुझको अपनी सुध देख तुम्हारे रेशमी बालों में पङे गजरे की चमक और तन बदन का हार श्रृंगार रह गयां हूं, मैं हतप्रभ, प्रिये हो चुका हूं, पूर्णरूपेण आकर्षित देख तुम्हारी, मोरनी की सी चाल और ऊपर से यह मधुर चंचलपन दोष न देना मोहे गर देख तुम्हारे अलंकृत बदन की छाया@प्रेम कर न दे मोहे, आपे से बाहर