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नरता कहते हैं जिसे, सत्तव
क्या वह केवल लड़ने में है ?
पौरूष क्या केवल उठा खड्ग
मारने और मरने में है ?
तब उस गुण को क्या कहें
मनुज जिससे न मृत्यु से डरता है ?
लेकिन, तक भी मारता नहीं,
वह स्वंय विश्व-हित मरता है।है वन्दनीय नर कौन ? विजय-हित
जो करता है प्राण हरण ?
या सबकी जान बचाने को
देता है जो अपना जीवन ?
चुनता आया जय-कमल आज तक
विजयी सदा कृपाणों से,
पर, आह निकलती ही आयी
हर बार मनुज के प्राणों से।आकुल अन्तर की आह मनुज की
इस चिन्ता से भरी हुई,
इस तरह रहेगी मानवता
कब तक मनुष्य से डरी हुई ?
पाशविक वेग की लहर लहू में
कब तक धूम मचायेगी ?
कब तक मनुष्यता पशुता के
आगे यों झुकती जायेगी ?यह ज़हर ने छोड़ेगा उभार ?
अंगार न क्या बूझ पायेंगे ?
हम इसी तरह क्या हाय, सदा
पशु के पशु ही रह जायेंगे ?
किसका सिंगार ? किसकी सेवा ?
नर का ही जब कल्याण नहीं ?
किसके विकास की कथा ? जनों के
ही रक्षित जब प्राण नहीं ?इस विस्मय का क्या समाधान ?
रह-रह कर यह क्या होता है ?
जो है अग्रणी वही सबसे
आगे बढ़ धीरज खोता है।
फिर उसकी क्रोधाकुल पुकार
सबको बेचैन बनाती है,
नीचे कर क्षीण मनुजता को
ऊपर पशुत्व को लाती है।हाँ, नर के मन का सुधाकुण्ड
लघु है, अब भी कुछ रीता है,
वय अधिक आज तक व्यालों के
पालन-पोषण में बीता है।
ये व्याल नहीं चाहते, मनुज
भीतर का सुधाकुण्ड खोले,
जब ज़हर सभी के मुख में हो
तब वह मीठी बोली बोले।थोड़ी-सी भी यह सुधा मनुज का
मन शीतल कर सकती है,
बाहर की अगर नहीं, पीड़ा
भीतर की तो हर सकती है।
लेकिन धीरता किसे ? अपने
सच्चे स्वरूप का ध्यान करे,
जब ज़हर वायु में उड़ता हो
पीयूष-विन्दू का पान करे।पाण्डव यदि पाँच ग्राम
लेकर सुख से रह सकते थे,
तो विश्व-शान्ति के लिए दुःख
कुछ और न क्या कह सकते थे ?
सुन कुटिल वचन दुर्योधन का
केशव न क्यों यह का नहीं-
"हम तो आये थे शान्ति हेतु,
पर, तुम चाहो जो, वही सही।
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RASHMIRATHI
PoetryRashmirathi (Rashmi: Light (rays) Rathi: One who is riding the chariot (not the charioteer)) of light is a Hindi epic written in 1952, by the Hindi poet Ramdhari Singh 'Dinkar'. The epic poem narrates the story of Karna who is regarded as one of mai...