मैं हिंदी हूँ

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मैं हिंदी हूँ
मुझे बचालो
वेंटिलेटर पे जिंदी हूँ

मेरी अहमियत बस इतनी ही
जैसे माथे की बिंदी हूँ

अगर मैं मर गयी
तो तुम भी अपनी पहचान खो दोगे
जागो ऐ हिन्दुस्तानियों
वरना तुम हिंदुस्तान खो दोगे।

अभी कोमा में हूँ
जल्द ही पूर्णविराम लग जायेगा।
तुम सब पर ही
मेरी मौत का इलज़ाम लग जायेगा।

फिर मैं पुस्तकालयों में नहीं
संग्रहालयों में पाई जाऊँगी
जो एक बार मैं चली गयी
तो लौट के न आ पाऊँगी।

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एक कविताWhere stories live. Discover now