2. कब तक सहेंगे (kab tak sahenge)

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कब तक सहेंगे
जो करते अत्याचार हमपर,
हम करते पूजा जिनकी
वहीं धोका देते,
गलती चाहे खुद की हो
मारते हर बार हमको।

कब तक सहेंगे
जो करते अत्याचार हमपार,
कपड़ों से चरित्र तोलने वालो
झांको पहले गिरेबान में अपने,
तुम्हें कोई हक नहीं
लगाने का दाग आंचल पर हमारे।

कब तक सहेंगे
जो करते अत्याचार हमपार,
कभी-कभी शक होता है
कहीं इन सब के पीछे भगवान तो नहीं,
फिर सोचती हूं देखकर
किया तो ये इंसान नेे ही।

अब न सह पाएंगे
या तो खुद मर जाएंगे,
या रूप दुर्गा का लेंगे
उन्हें मर गिराएंगे,
कब तक सहेंगे
जो करते अत्याचार हमपर।

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