2. अंतर्द्वंद्व

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हिम्मत जवाब दे रही,अब लड़ूँ भी तो किससे?किसी और से पहले,यह द्वंद्व है मेरा मुझसे।

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हिम्मत जवाब दे रही,
अब लड़ूँ भी तो किससे?
किसी और से पहले,
यह द्वंद्व है मेरा मुझसे।

एक अंधाधुंध-सी दौड़ है,
मैं भी बस भाग रही हूँ।
बहते आँसूओं को है एक अनजानी-सी आस,
अंधेरी रातों को भी जाग रही हूँ।

उलझी हूँ इसी उधेड़बुन में,
क्या मेरी कोई पहचान नहीं है?
ना हूँ मैं जैसा सोचा था औरों ने,
तो क्या मेरा कोई सम्मान नहीं है?

क्षणभंगुर सी मृगतृष्णा है,
यह आवरण भी एक दिन हट जाएगा।
सपनों को मेरे पंख लगा,
यह अँधियारा भी एक दिन छंट जाएगा।

© गरुणा सिंह (Stella)

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