हिम्मत जवाब दे रही,
अब लड़ूँ भी तो किससे?
किसी और से पहले,
यह द्वंद्व है मेरा मुझसे।एक अंधाधुंध-सी दौड़ है,
मैं भी बस भाग रही हूँ।
बहते आँसूओं को है एक अनजानी-सी आस,
अंधेरी रातों को भी जाग रही हूँ।उलझी हूँ इसी उधेड़बुन में,
क्या मेरी कोई पहचान नहीं है?
ना हूँ मैं जैसा सोचा था औरों ने,
तो क्या मेरा कोई सम्मान नहीं है?क्षणभंगुर सी मृगतृष्णा है,
यह आवरण भी एक दिन हट जाएगा।
सपनों को मेरे पंख लगा,
यह अँधियारा भी एक दिन छंट जाएगा।© गरुणा सिंह (Stella)
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लम्हे (हिन्दी कविता संग्रह)
Poetryबीते दिनों के कुछ लम्हे, मैं भी आज चुरा लूँ क्या? थोड़ी सी हिम्मत कर, मैं भी आज मुस्कुरा लूँ क्या? लम्हे... कुछ खट्टी-मीठी यादों के, कुछ अनकही बातों के। आज ज़िंदगी की इस उधेड़बुन में, जहाँ हर कोई बस अपनी ही धुन में मग्न होता जा रहा है, यह लम्हे ही त...