राशन भाषण का आश्वासन ,
देकर कर बेगार खा गई।
रोजी रोटी लक्कड़ झक्कड़ ,
खप्पड़ सब सरकार खा गई।
देश हमारा है खतरे में,
कह जंजीर लगाती है।
बचे हुए थे अब तक जितने,
हौले से अधिकार खा गई।
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खो खो के घर बार जब अपना ,जनता जोर लगाती है।
सब्ज बाग से सपने देकर ,
सबके घर परिवार खा गई।
सब्ज बाग के सपने की भी,
बात नहीं पूछो भैया।
कहती बारिश बहुत हुई है,
सेतु, सड़क, किवाड़ खा गई।
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खबर उसी की शहर उसी के ,दवा उसी की जहर उसी के,
जफ़र उसी की असर बसर भी ,
करके सब लाचार खा गई।
कौन झूठ से लेवे पंगा ,
हक वाले सब मुश्किल में।
सच में झोल बहुत हैं प्यारे ,
नुक्कड़ और बाजार खा गई।================
देखो धुल बहुत शासन में ,हड्डी लक्कड़ भी ना छोड़े।
फाईलों में दीमक छाई ,
सब के सब मक्कार खा गई।
जाए थाने कौन सी साहब,
जनता रपट लिखाए तो क्या?
सच की कीमत बहुत बड़ी है,
सच खबर अखबार खा गई।
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हाकिम जो कुछ भी कहता है,तूम तो पूँछ हिलाओ भाई,
हश्र हुआ क्या खुद्दारों का ,
कैसे सब सरकार खा गई।
रोजी रोटी लक्कड़ झक्कड़ ,
खप्पड़ सब सरकार खा गई।
सचमुच सब सरकार खा गईं,
सचमुच सब सरकार खा गईं।
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चेतना की पुकार
Poetryजीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटती है जो मेरे ह्रदय के आंदोलित करती है। फिर चाहे ये प्रेम हो , क्रोध हो , क्लेश हो , ईर्ष्या हो, आनन्द हो , दुःख हो . सुख हो, विश्वास हो , भय हो, शंका हो , प्रसंशा हो इत्यादि, ये सारी घटनाएं यदा कदा मुझे आंतरिक रूप से...