गेहूँ के दाने

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गेहूँ के दाने क्या होते,
हल हलधर के परिचय देते,

देते परिचय रक्त बहा है ,
क्या हलधर का वक्त रहा है।
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मौसम कितना सख्त रहा है ,
और हलधर कब पस्त रहा है,
श्वेदों के कितने मोती बिखरे,

धार कुदालों के हैं निखरे।
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खेतों ने कई वार सहें हैं,

छप्पड़ कितनी बार ढ़हें हैं,
धुंध थपेड़ों से लड़ जाते ,

ढ़ह ढ़ह कर पर ये गढ़ जाते।
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हार नहीं जीवन से माने ,

रार यहीं मरण से ठाने,
नहीं अपेक्षण भिक्षण का है,

हर डग पग पे रण हीं माँगे।
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हलधर दाने सब लड़ते हैं,

मौसम पे डटकर अढ़ते हैं,
जीर्ण देह दाने भी क्षीण पर,

मिट्टी में जीवन गढ़तें हैं।
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बिखर धरा पर जब उग जाते ,

दाने दुःख सारे हर जाते,
जब दानों से उगते मोती,

हलधर के सीने की ज्योति।
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शुष्क होठ की प्यास बुझाते ,

हलधर में विश्वास जगाते,
मरु भूमि के तरुवर जैसे,

गेहूँ के दाने हैं होते।

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अजय अमिताभ सुमन

चेतना की पुकारWhere stories live. Discover now