गेहूँ के दाने क्या होते,
हल हलधर के परिचय देते,देते परिचय रक्त बहा है ,
क्या हलधर का वक्त रहा है।
++++++++++++++मौसम कितना सख्त रहा है ,
और हलधर कब पस्त रहा है,
श्वेदों के कितने मोती बिखरे,धार कुदालों के हैं निखरे।
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खेतों ने कई वार सहें हैं,छप्पड़ कितनी बार ढ़हें हैं,
धुंध थपेड़ों से लड़ जाते ,ढ़ह ढ़ह कर पर ये गढ़ जाते।
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हार नहीं जीवन से माने ,रार यहीं मरण से ठाने,
नहीं अपेक्षण भिक्षण का है,हर डग पग पे रण हीं माँगे।
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हलधर दाने सब लड़ते हैं,मौसम पे डटकर अढ़ते हैं,
जीर्ण देह दाने भी क्षीण पर,मिट्टी में जीवन गढ़तें हैं।
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बिखर धरा पर जब उग जाते ,दाने दुःख सारे हर जाते,
जब दानों से उगते मोती,हलधर के सीने की ज्योति।
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शुष्क होठ की प्यास बुझाते ,हलधर में विश्वास जगाते,
मरु भूमि के तरुवर जैसे,गेहूँ के दाने हैं होते।
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अजय अमिताभ सुमन
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चेतना की पुकार
Poetryजीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटती है जो मेरे ह्रदय के आंदोलित करती है। फिर चाहे ये प्रेम हो , क्रोध हो , क्लेश हो , ईर्ष्या हो, आनन्द हो , दुःख हो . सुख हो, विश्वास हो , भय हो, शंका हो , प्रसंशा हो इत्यादि, ये सारी घटनाएं यदा कदा मुझे आंतरिक रूप से...