दवा मिले ना मिलता टीका आराम से

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कोरोना बीमारी की दूसरी लहर ने पूरे देश मे कहर बरपाने के साथ साथ भातीय तंत्र की विफलता को जग जाहिर कर दिया है। चाहे केंद्र सरकार हो या की राज्य सरकारें, सारी की सारी एक दूसरे के उपर दोषरोपण में व्यस्त है। जनता की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव प्रचार हो गया है। दवाई, टीका, बेड आदि की कमी पूरे देश मे खल रही है। प्रस्तुत है इन्ही कुव्यथाओं पर आक्षेप करती हुई कविता "दवा मिले ना मिलता टीका आराम से"

चुनाव में है करना प्रचार जरूरी ,

ऑक्सीजन की ना बातें ना बेड मंजूरी,

दवा मिले ना मिलता टीका आराम से ,

 बैठे हैं चुप चाप जरा दिल को थाम के,

आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।

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खांसी किसी को आती तो ऐसा लगता है ,

यम का है कोई दूत घर पे आ गरजता है ,

छींक का वो ही असर है जो भूत नाम से , 

 बैठे हैं चुप चाप जरा दिल को थाम के,

आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।

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हाँ हाँ अभी तो उनसे कल बात हुई थी,

इनसे भी तो परसो हीं मुलाकात हुई थी,

सिस्टम की बलि चढ़ गए थे बड़े काम के,

बैठे हैं चुप चाप जरा दिल को थाम के,

आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।

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एम्बुलेंस की आवाज है दिन रात चल रही,

शमशान में चिताओं की बाढ़ जल रही,

सहमा हुआ सा मन है आज राम नाम से,

बैठे हैं चुप चाप जरा दिल को थाम के,

आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।

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भगवान अल्लाह गॉड सारे चुप खड़े हैं ,

बहुरुपिया कोरोना बड़े रूप धड़े हैं ,

साईं बाबा रह गए हैं  बस हीं नाम के ,

बैठे हैं चुप चाप जरा दिल को थाम के,

आ जाए ना चुपचाप कोरोना धड़ाम से।

                                                       

चेतना की पुकारWhere stories live. Discover now