'जीवन'

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जन्म जीवन की अनंत यात्रा का एक पड़ाव
मृत्यु पड़ा का अंत
जीवन एक रहस्य,रोमांचक, आश्चर्य पिटारा
खोलने पर खुलता,उलझने पर उलझता
अनगिनत जन्म लग जाते
इसे सुलझाने में

शुभ-अंशुभ दोनों कर्मों से
जीवन बँधता
अशुभ कर्म अंधकार बढ़ाते
अंधकार की काल कोठरी में
जन्म-मृत्यु के चक्र में भटकाते

शुभ कर्म का प्रतिफल-पुण्य
सुख देता जठराग्नि में
जिसमें डूब जीव-आत्मा
कर्म, स्वधर्म ,कर्तव्य बोध से
विमुख हो जाती

सुख में -उलझन नहीं सीमाहीन भोग होता है
भोग-लिप्सा -(जितना मिले उतना कम है)
दहकता दवानल  (ईंधन पड़ते ही भड़क उठना)
पराकाष्ठा में जिसकी अनंत अतृप्ति ,
आसक्ति ,और मोह की लहरें
जीवन को भटकाती

तृष्णा और आसक्ति द्वार राग के
जहाँ राग वहाँ आसक्ति
जहाँ आसक्ति वहाँ कामना और
जहाँ कामना वहाँ बंधन ही बंधन

सत्,रज,तम गुण तीन प्रकृति के
देहासक्ति पैदा करते
इन तीन गुणों की  आसक्ति ही
बंधन का कारण बनती है

तम-निराशा,दुख के अनुभव
रज-आशा और सुख के अनुभव
सत् दोनों के बीच संतुलन रखता

राग-मिठास है
द्वेष-कड़वाहट
दोनों भावों से मुक्ति
'अनासक्ति' है

मनुष्येतर योनियाँ भोगों के लिए मिलती है
कर्म नहीं ,निष्काम कर्म की होती है
  उत्तम परिणति ।
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KavyangaliWhere stories live. Discover now