'जहाँ प्रेम वहाँ भय कैसा'

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प्रेम हमारे अंदर बसता
प्रेम भाव ही हमें अच्छा लगता है
इसी भाव के साथ जन्म हम लेते
वितरण कर इसका
अपनेपन का दायरा बढ़ा पाते

जहाँ प्रेम वहाँ भय कैसा?
प्रेम वास्तविकता ,
भय भ्रम है
तरह-तरह के भ्रम में उलझ मानव
जीवन को जटिल बनाता जाता 
परेशानियों का जाल  बुन स्वयं
उलझ कर उसमें रह जाता
भय से हो भयभीत , जीवन से भाग,संकुचित
अपने को कर लेता

प्रेम से भरे होने पर जीवन का स्वागत करते हैं
जहाँ प्रेम वहाँ-
उत्साह,उत्सुकता और स्वीकार्यता है
जहाँ भय वहाँ-
बेचैनी, घबराहट निराशा औरअस्वीकार्यता होती

भय और प्रेम दो मूलप्रेरक शक्तियाँ
दो ही रूप में अभिव्यक्त होती-
जहाँ प्रेम वहाँ-
शाँति,उल्लास और  संतोष के भाव होते
जहाँ भय वहाँ-
उदासी,घृणा,क्रोध,
अवसाद,आलोचना और आत्मग्लानि होती

भय का आधार केवल भ्रम होता
यह स्वनिर्मित होता है
चयन स्वयं ही करना होता
प्रेम चुने या भय
सत्य प्रेम की रोशनी ,समस्त सतप्रेरणाओं का स्त्रोत ,
सही राह हनें दिखलाती
भय  -
अंधकार है  ,कुंद हौसलों को करता
प्रेम आत्मा का प्रकाश
लेकर इसको जीवन में जो अग्रसर होता है
संसार में उसे शूल नहीं ,फूल नज़र आते हैं ।

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