'जितना चाहा उनको'

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जितना हमने चाहा उनको
           वह उतने ही दूर हुए
फिर भी जाने क्या थीं बातें
           मिलने पर मज़बूर हुए

कभी डगर पर देखा उनको
           कभी निहारा पथ उनका
जाने क्या था उस चितवन में
               जिसे देख मज़बूर हुए

घड़ी दो घड़ी पास जो आए
             कुछ न अपने हाल कहा
अधर सी लिए मानो हमने
             ख़ुद ही दिल का दर्द सहा

पलक मूँद कर जब भी सोए
             चेहरा उनका साफ दिखा
सुबह हुई तो फिर मिलने को
               दिल उनसे बेताव हुआ

हर धड़कन का कुछ तो मतलब है
             यह हमको आभास हुआ
कुछ दिन रूठे रहे जो हमसे
            ग़म का तब एहसास हुआ ।

KavyangaliWhere stories live. Discover now