रात तीन बजे ...!
मुझे झपकी सी आने लगी,मैने जबरन आँखें खोली आयशा की तरफ़ देखा वो एक पेड़ की खूँटी के सहारे सोयी हुई थी ...!
कमबख्त ना जाने कब से सो रही थी .मै यू ही जाग रहा हूँ ...?
मैने उसे जगाने और टेंट के अंदर भेजने की सोची,जैसे ही पास से उसका चेहरा देखा .....
गोरे चेहरे पे उड़ते वो बाल,बँद आँखों की पलकों पे वो खूबसूरत नींद ..!
ज़माने भर का सकून था इस वक्त उसके चेहरे पे ..!मैने जब भी देखा,दर्द या गुस्सा देखा था,पर अभी की मासूम बच्चे की तरह सोयी थी वो .
इस सकून को उससे छीनने की हिम्मत मुझमें नही थी,और बाहर अकेले खुले में उसे छोड़ नही सकता था,बस फ़िर से महान रणवीर,अपनी नींद छोड़ चल पड़े सेवा करने ...!
हा अब कोई नींद नही थी,बस उसे पूरी रात यू ही सकून से सोते देखना था .
पर जो लोग रात को जागते है उनको तो पता ही है 3 से 6 बजे तक सबसे भयंकर नींद आती है .!
पता नही कब आशिकी पे नींद भारी पड़ गयी .
सुबह सूरज की तेज रोशनी ने मुझे जगाया ...!
मैने आँखें खोली कुछ देर तो आँखे खोल ही नही पाया ..!
जब खुली तो खुली रह गयी ...!
आयशा गायब थी .........
मै जल्दी से टेंट के अंदर गया वो वहाँ भी नही थी ...!
कहाँ गयी थी वो ...?????
कही कुछ ........?????????
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