भाग-2

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''सुनयना की. मेरे साथ आफिस में है. 4-5 महीने पहले ही दिल्ली से ट्रांसफर हो कर आई थी. उस का घर भी मेरे घर के पास ही है. नयानया घर बसा है यही सोच कर हम पतिपत्नी देखभाल करते रहे. उस का पति भी जब मिलता बड़े प्यार से मिलता. एक सुबह आया और कहने लगा कि उस की मां बीमार है इसलिए उसे कुछ दिन छुट्टी ले कर घर जाना पड़ेगा, पीछे से सुनयना अकेली होगी, हम जरा खयाल रखें. हम ने कहा कोई बात नहीं. अकेली जान है हम ही खिलापिला दिया करेंगे.

''मेरी श्रीमती ने तो उसे बच्ची ही मान लिया. 10-15 दिन बीते तो पता चला सुनयना का पांव भारी है. श्रीमती लेडी डाक्टर के पास भी ले गईं. हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई. नाश्ते का सामान भी हमारे ही घर से जाने लगा. अकेली लड़की कहीं भूखी ही न सो जाए... रात को रोटी भी हम ही खिलाते. महीना भर बीत गया, उस का पति वापस नहीं आया.

'' 'अब इस के पति को आ जाना चाहिए. उधर मां बीमार है इधर पत्नी भी अस्वस्थ रहने लगी है. इन्हें चाहिए पूरा परिवार एकसाथ रहे. ऐसी कौन सी कंपनी है जो 2-2 महीने की छुट्टी देती है...क्या इस के पति को नौकरी नहीं करनी है जो अपनी मां के पास ही जा कर बैठ गया है.'

''मेरी पत्नी ने जरा सा संशय जताया. पत्नी के मां बनने की खबर पर भी जो इनसान उसे देखने तक नहीं आया वह कैसा इनसान है? इस परदेस में उस ने इसे हमारे सहारे अकेले छोड़ रखा है यही सोच कर मैं भी कभीकभी पूछ लिया करता, 'सुनयना, गिरीश का फोन तो आता रहता है न. भई, एक बार आ कर तुम से मिल तो जाता. उसे जरा भी तुम्हारी चिंता नहीं है... और उस की नौकरी का क्या हुआ?'

''2 महीने बीततेबीतते लेडी डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड कर बच्चे की जांच करने को कहा. श्रीमती 3-4 घंटे उस के साथ बंधी रहीं. पता चला बच्चा ठीक से बढ़ नहीं रहा. 10 दिन बाद दोबारा देखेंगे तब तक उस का बोरियाबिस्तर सब हमारे घर आ गया. सुनयना का रोनाधोना चालू हुआ जिस पर उस के पति पर हमें और भी क्रोध आता. क्या उसे अपनी पत्नी की चिंता ही नहीं. मैं सुनयना से उस के पति का फोन नंबर मांगता तो वह कहती, उस की घरेलू समस्या है, हमें बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वास्तव में सुनयना के सासससुर यहां आ कर उन के साथ रहना ही नहीं चाहते जिस वजह से बेटा पत्नी को छोड़ उन की सेवा में व्यस्त है.

''खाली जेब मांबाप की सेवा कैसे करेगा? क्या उन्हें समझ में नहीं आता. 3 महीने होने को आए क्या नौकरी अभी तक बच रही होगी जो वह...

''सुनयना का रोनाधोना चलता रहा और इसी बीच उस का अविकसित गर्भ चलता बना. पूरा दिन मेरी पत्नी उस के साथ अस्पताल में रही. इतना सब हो गया पर उस का पति नहीं आया. किंकर्तव्य- विमूढ़ होते जा रहे थे हम.

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