श्वांसों का लय जीवन में तय है,
पर क्या नर का ये परिचय है?जन्म मरण क्यों , ज्ञात नही है,
ज्ञान अस्त कोई प्रात नहीं है।मन का बस विस्तार अजय है,
हे मानव ये कैसा क्षय है?अकारण मन संचय आतुर,
हृदय फलित विषयी मन नासूर।निज बंधन व्यापार बढ़ा कर,
तन पर मन पर बोझ चढ़ा कर।क्या हासिल अर्जित कर लोगे?
नाम थोड़ा संचित कर लोगे।इस नाम का मतलब है क्या?
देखो मन का करतब है क्या?सोचो कैसे मन आप्त हो,
दूर अंधेरा त्राण प्राप्त हो।जब तक मन के पार ना जाओ,
ना निज का परिचय कर पाओ।तब तक क्या रखा जग जय में,
जीवन तो निज मन के क्षय में।
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चेतना की पुकार
Poetryजीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटती है जो मेरे ह्रदय के आंदोलित करती है। फिर चाहे ये प्रेम हो , क्रोध हो , क्लेश हो , ईर्ष्या हो, आनन्द हो , दुःख हो . सुख हो, विश्वास हो , भय हो, शंका हो , प्रसंशा हो इत्यादि, ये सारी घटनाएं यदा कदा मुझे आंतरिक रूप से...