खाना

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भगवान भी ये चाहता है कि हम सब खायें, ढेर सारी मिठाई
इसिलिये तो उसने हमारी ये धरती, रसगुल्ले सी गोल बनाई

क्या आपने कभी , कुदरत की इस बात पर गौर किया है
जीवनदायक सूरज को भी, उसने कचौरी का रंग दिया है

फल और सब्जियों पर तो केवल, पशुओं का अधिकार है
मानवजाति हेतु खाने योग्य खाना तो मठरी और आचार है

लड़की देखने आने वालों को, सेहतमंद दलिया खिलाओगे
बेटी को अपनी जिंदगी भर, अपने घर में ही तुम बिठाओगे

अरे भगवान ने तो ये चाय काफी भी, सिर्फ इसिलिये बनाये
ताकि आदमी समोसे नमकीन का, सही से लुत्फ उठा पाये

आप भी आज से फ्रूट्स नहीं, केवल ड्राई फ्रूट्स ही खाइये
"छोटे पैकेट में बढ़े धमाके" का, सही मतलब जान जाईये

तो भाईयों और उनकी बहनों, इस बनिये का मान लो ये कहना
कचौरी समोसे के अलावा, किसी और खाने को खाना न कहना

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