नजूल की जमीन (Nazul Land)

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आज हिन्दुस्तान के हर प्रान्त में आपको इस आशय के साइन बोर्ड लगे मिल जायेंगे जिन पर लिखा होता है कि यह नजूल की जमीन है। कभी न कभी यह विचार जरूर कौंधा होगा की आखिर ये नजूल साहब हैं कौन जिनकी ये जमीनें है। हिन्दुस्तान की आजादी की पहली लड़ाई 1857 की मानी जाती है जब हिन्दुस्तानी सिपाहियों से भरी अंग्रेजों की सेना में विद्रोह पनप उठा था। यह विद्रोह फैलते फैलते समूचे देश की बहुसंख्यक रियासतों तक पहुँच गया। अंग्रेजों की कूटनीतिक सफलता से देश की सभी रियासतें दो भागों में बाँट गयी, पहली अंगरेजी राज का समर्थन करने वाली रियासतें और दुसरी विद्रोहियों का साथ देने वाली। जिन रियासतों ने अंग्रेजों का साथ दिया उन्हें अंग्रेजों की ओर से पर्याप्त समर्थन और सहयोग मिला जबकि विद्रोहियों के खिलाफ मुकदमे चलाकर उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया या फंसी के फंदे पर लटका दिया गया। विद्रोही अपनी जान बचाकर भूमिगत हो गए यो उनकी जमीनें सरकार ने अपने कब्जे में लर ली। कदाचित यही क्रम 1947 में भारत की आजादी मिलने तक जारी रहा। इसी बीच 1869 में अंगेज गवर्नर आउत्रम ने अंगरेजी वर्चस्व के लिए जमींदारी को नीलाम करते हसे उसके पक्ष में दिया जो सबसे ज्यादा लगान देने को राजी हुआ इसके अलावा अवध में 1892  का ऐतिहासिक बंदोबस्त भी संपन्न हुआ। इस समूचे कालखंड में विद्रोहियों की जो भूमि सरकार के कब्जे में आयी वह नजूल की जमीन कहलाई। चूँकि अंग्रेजों के खिलाफ समूचे देश में विद्रोह हुआ और उन विद्रोहियों की जमीन कब्जे में ली गयी इसीलिये पूरे देश में नजूल की जमीनें पायी जाती है।

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भूमि समस्या (आदि से वर्तमान तक)حيث تعيش القصص. اكتشف الآن