व्यवस्थ्ति कर संग्रहण और फसली वर्ष

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मौर्य काल में जनपद का प्रधान अधिकारी 'प्रदेष्टा' होता था। संग्रहण कार्य हेतु पृथक से अधिकारी की नियुक्ति होती थी जिसे 'गोप' कहा जाता था गोप के उपर 'स्थानिक' तथा उसके उपर 'नगराध्यक्ष' का पद होता था इस साम्राज्य में सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई ग्राम होती थी और ग्राम का प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी ग्रामणी होता था। 

मौर्य काल में नगर प्रशासन के लिये पृथक व्यवस्था थी और कर आरोपण हेतु एक पृथक समिति का उल्लेख भी मिलता है। 

इस प्रकार कर आरोपण और उसके संग्रहण हेतु एक व्यवस्थित स्वरूप का प्रमाणिक उल्लेख तत्कालीन गार्गा संहिता नामक पुस्तक से मिलता है। इस पुस्तक से यह जानकारी भी मिलती है कि पुश्यमित्र शुंग नामक ब्राहमण ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या की और शासक के रूप में अपने वंश की स्थापना की। 

पुष्यमित्र शुग के काल की प्रमुख घटना विदेशी यवन आक्रमण है।

प्राचीन प्रमाणिक साक्ष्यों में मनु रचित 'मनु संहिता' तथा महर्षि पतंजलि रचित 'महाभाष्य' प्रमुख है। यह बताना समीचीन होगा कि मनु और पतंजलि पुष्यमित्र के समकालीन थे और आपस में मित्र भी थे। 

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद राजनैतिक एकता समाप्त हो गयी और कई छोटे छोटे राज्य बन गये जिसका लाभ उठाकर अनेक विदेशी शक्तियों ने भारत पर आक्रमण किया इनमें से बैक्ट्रिया से आये आक्रांता यवन शासक प्रमुख थे जिन्होने सियालकोट जो उस समय शाकल के नाम से जाना जाता था को अपनी राजधानी बनाया था। यह उल्लेखनीय है कि यवन शासकों ने भूमि-स्वामित्व-अधिकार का कभी दावा नहीं किया था। यह बात इन ऐतिहासिक तथ्यों से स्पष्ट है कि औरंगजेब ने हुंडी, पालम तथा अन्य स्थानों पर कृषकों से भूमि खरीदी थी, जैसा अकबर ने अकबराबाद और इलाहाबाद में किले बनाने के लिए किया था। ऐसा ही शाहजहाँ ने भी किया उक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि यवन शासक केवल कर वसूल करने में ही संपत्ति अधिकार मानते थे, न कि भूमि में। 

उनके शासनकाल में कृषक के अधिकारों को उच्चतम मान्यता दी गई थी। कृषक अपना कर राजा तथा गाँव के मुखिया द्वारा ही देता था और राजा तथा मुखिया को राज्य द्वारा इस कार्य का पारिश्रमिक मिलता था। अकबर के राजस्वमंत्री राजा टोडरमल के द्वारा भूमि का व्यवस्थित व्योरा एकत्रित किया गया और भूमि की विभिन्न  श्रेणियों का निर्धारण किया गया । जिस वर्ष अकबर का राज्याभिषेक हुआ उस  वर्ष के मुस्लिम कलेंडर में हिजरी वर्ष को फसली नाम दिया गया। हिजरी कलेंडर वर्ष की संख्या को ग्रहण करने के अतिरिक्त फसली वर्ष में शेष तत्व ग्रेगेरियन कलेंडर के लिए गए और इसकी अवधि का निर्धारण भी उसी कलेंडर की 30 जून की तिथि को किया गया। इस प्रकार ये फसली वर्ष अंगरेजी कलेंडर के 1 जुलाई को प्रारम्भ होकर अगले वर्ष की 30 जून को समाप्त होता है। यानी ग्रेगेरियन के प्रारम्भिक 6 माह और अंतिम 6 माह अलग अलग फसली वर्ष होता है। इसे प्राप्तकरने का आसान तरीका ग्रेगेरियन वर्ष में से क्रम्श 592 तथा 591 घटाकर प्राप्त किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में जमीदारी विनाश कानून लागू होने का वर्ष 1952 है जिसकी 1 जुलाई को 1360 फसली वर्ष का आरम्भ हुआ था इसी लिए किसी विवाद की दशा में 1359 फसली यानी (1 जुलाई 1951 से 30 जून 1952) के अभिलेखों को प्रामाणित मानकर विवाद का निस्तारण किया जाता है। आजकल 1423  फसली वर्ष गतिमान है जो 30 जून 2015 तक विद्यमान रहेगा। 1 जुलाई 2015 को फसली वर्ष 1424 प्रारम्भ होगा।

......जारी....

भूमि समस्या (आदि से वर्तमान तक)Dove le storie prendono vita. Scoprilo ora