शत्रु संपत्ति (Enemy Property)

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1947 में मिली आजादी के साथ एक नए रास्ट्र पकिस्तान का उदय हुआ  और  हिन्दुस्तान ने चीन और पाकिस्तान सहित सभी पडोसी राष्ट्रों को एक मित्र राष्ट्र की तरह सम्मान दिया। 1954 में भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए पांच सिद्धांतों को लेकर समझौता हुआ जिसे 'पंचशील समझौता'  कहा जाता है। उस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत में चीन शासन को स्वीकार किया। उसी समय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया था। 20 अक्टूबर, 1962 को भारत पर चीन ने हमला किया था। इस युद्ध को 1962 के 'भारत-चीन युद्ध'  के नाम से जाना गया। 1965 में जब भारत पर पुनः पकिस्तान का आक्रमण हुआ और यहाँ के कुछ मुस्लिम लोग पाकिस्तान भाग गए और अंततः 1971 में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान प्रथक होकर बँगला देश और पाकिस्तान के रूप में अलग अलग राष्ट्र हो गए तब जाकर पाकिस्तान को शत्रु देश Enemy country घोषित किया गया और वहां के निवासियों की हिन्दुस्तान में रह गयी संपत्ति को शत्रु संपत्ति (Enemy Property) का नाम दिया गया । ठीक इसी प्रकार पाकिस्तान ने वहाँ छूटी भारतीयों की संपत्ति को पाकिस्तान की शत्रु संपत्ति के रूप में घोषित किया।
1966 में ताशकंद में हुए एक समझौते के अंतर्गत इन संपत्ति की व्यवस्था हेतु एक अभियोजक नियुक्त किया गया जो ऐसी समस्त सम्पत्तियो की देखरेख कार्य करते हैं।
इन सम्पत्तियो की व्यवस्था हेतु शत्रु संपत्ति Enemy Property Act अधिनियम 1968 तथा राजकीय अस्थान अधिनियम 1971 बनाया गया है। 

गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार 2 जनवरी, 2018 तक भारत में कुल 9,280 शत्रु संपत्तियाँ पाकिस्तानी नागरिकों की तथा 126 चीनी नागरिकों की थीं। सरकार के अनुसार इन संपत्तियों की अनुमानित लागत 1 लाख करोड़ रुपए है। पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा छोड़ी गई 9,280 संपत्तियों में सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में (4991) इसके बाद पश्चिम बंगाल (2,735) तथा दिल्ली (487) में हैं। चीनी नागरिकों द्वारा छोड़ी गई 126 संपत्तियों में सर्वाधिक मेघालय (57) में तथा पश्चिम बंगाल (29) में स्थित हैं।

इससे जुडा ऐक रोचक तथ्य बताना चाहूंगा कि दुनिया की सबसे बडी ट्रेक्टर कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा की शुरूआत 2 अक्तूबर 1945 में हुई थी. के सी महिंद्रा, जे सी महिंद्रा और मलिक गुलाम मोहम्मद ने लुधियाना में कंपनी की स्थापना की थी. शुरू में ये स्टील कारोबार में थी. छोटी सी हिस्सेदारी वाले गुलाम मोहम्मद का नाम भी कंपनी के नाम में जोड़ा गया ताकि हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया जा सके. विभाजन का विमर्श उठा तो भी कारोबार पर फर्क नहीं पड़ा लेकिन आखिरकार 1947 में देश बंट गया. मलिक गुलाम मोहम्मद ने पाकिस्तान चुना और पहले वित्तमंत्री का ज़िम्मा उठाया. आगे चलकर 1951 में मलिक गुलाम मोहम्मद का राजनीतिक करियर और आगे बढा । वो पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बन गए।. बहरहाल देश के बंटवारे के साथ कारोबार भी बंट गया.।

देश की आज़ादी के अगले साल 1948 में  कंपनी का नाम महिंद्रा एंड मोहम्मद से महिंद्रा एंड महिंद्रा हो गया.क्योकि अब मलिक गुलाम मोहम्मद कंपनी का हिस्सा नहीं थे.।

जारी

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