दुविधा में है हम

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दुविधा में है हम
की अपने दुःख सुनाये कैसे
प्यार करते है
पर दुविधा में है हम
की उसका इज़हार करे कैसे ।

दुविधा में है हम
की अपने दुःख सुनाये किसे
दिल में बस्ती है वो मेरे
पर दुविधा ये है की
उसके दिल है कि उसके दिल तक पहुँचे कैसे ।

दुविधा में है हम
की ज़िंदगी जिए कैसे
खुश रखते है दुसरो को
पर दुविधा ये है कि
खुदको खुश रखने की लिए करू कर्म कैसे ।

इतनी सारी दुविधाएं लेकर जी रहे हम
ना वो मिलती है, ना ज़िंदगी के हसींन पल
सिख गये है हम रहना खुश
ऐसी ही परिस्तिथियों में भी
पर दुविधा ये है कि
अकेलापन दूर करने के लिए
हमसफ़र ढूंढे कैसे ।।

दास्ताँ हमारीWhere stories live. Discover now