दो दिल ऐसे मिलेंगे...🌼

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(* don't worry,for English translation scroll dowñ)

भाग -२ (Chapter - 2 Do Dil Aise Milenge🌼The two hearts will be one...🌼)

शादी....वह शब्द जो हमारे लिए बहुत ख़ास है। मां कहा करती थी कि एक दिन वो भी अपने लाड़ेसर के लिए बन्नी लायेंगी,उनके राम की सिया,जैसे रामजी सदा अपनी माता ,अपनी पत्नी के नाम से जाने गए वैसे ही हम,रामचंद्र चौहान,अपनी मां के चन्द्र,अपनी पत्नी के वर के रूप में जाने जाएंगे।

पर क्या मां की वह बात सच्ची थी,क्या कहानी सच का रूप ले सकती हैं?....क्या पता।

कई दिनों से पिताजी किसी विशेष अवसर की खोज में प्रतीत हुए, कई बार कहा कि कुछ ज़रूरी बात करनी है और कल रात वो बात सामने आ ही गई।

हम रोज़ की तरह,संध्या वंदन करके पिताजी को प्रसाद देने गए, मां भी जाती थी और संग में उनके चन्द्र यानी हम भी।.... मां।

फिर खो गए उनकी यादों में....पर कल पिताजी ने प्रसाद लेकर हम से मुंह नहीं मोड़ा,ना ही हमें देखकर अनदेखा किया, ये क्या हुआ,कैसे हुआ नहीं जानते...पर लगा जैसे कुछ पलों के लिए ये हवेली फिर से घर बन गई...जैसे मां फिर से आ गई..

हम रोज़ की तरह अपने कमरे में जाने लगे तभी..

चन्द्र....क्या पिताजी ने सच में हमें चन्द्र कहकर पुकारा,वैसे ही जैसे मां के समय कहते थे?

पिताजी - बेटा, हमें आपसे कुछ बात करनी है।आपके पास समय है?

समय....हमारे पास तो हमेशा से समय था पर शायद आपके पास ही.....पर ये हम उनसे कह ना सके और बस हां में सर हिला दिया।

पिताजी हमारी ओर तेज़ी से आए और हाथ पकड़ कर हमें अपनी बैठक में ले गए।उस पल लगा कि जैसे वो फ़िर से जवान हो गए,और हम फिर से बच्चे।जैसे अगर उन्होंने हाथ छोड़ दिया तो गिर जाएंगे,इस बार शायद केवल हम नहीं,बल्कि वो भी। एक हाथ उन्होंने थामा तो दूसरा आदतन मां की और बढ़ा,पर मां थी ही नहीं,सो हमने दूसरे हाथ से भी पिताजी के हाथ को पकड़ लिया और शायद उस बचपन को भी।

पिताजी ऐसा करते ही रुक गए और मुड़के हमें देखने लगे। नहीं,आज वो हमारी आंखे,जों हमारी मां की झलक हैं,उन्हें नहीं बल्कि जैसे अपने छोटे से चन्द्र की आत्मा में झांक रहे थें और इस विचार से दोनों ही असहज भी थें, तो कहीं पर संतुष्ट भी।

छाप तिलक सब छीनी रे....Where stories live. Discover now