🌌बेसुरे दिल की ये धुन,करता दलीलें तू सुन🌌

153 20 126
                                    

भाग - ३३ (Chapter -33 🌌The oh-not-so- melodious tune of my heart ,my Love they flow only for you 🌌)

रणकभंवर सु आव्यो ओ बाबा दूंडाला ,
कोई रिद्ध सिद्ध ने लें साथ, रिद्घ सिद्ध करों बींदायक सुंडाला...🌼

(Oh the Lord from Ranakbhanwar,O Dear Lord Ganesh,
Bring along the Goddesses of prosperity,your beloved wives Ridhi -Sidhi to our place,and spread prosperity everywhere Dear Bindayak....🌼)

और इस प्रकार प्रथम पूज्य श्रीगणेश को न्यौतने के (आह्वान) साथ ही ब्याह के मंगलकार्यों का भी श्रीगणेश हुआ।

And with inviting the Lord of prosperity, happiness and auspiciousness i.e. Lord Ganesh,the wedding festivities began.

मन में जो हलचल कुछ समय पूर्व ही शांत होने लगी थी, वो पांवणो (मेहमानों) से लदे भरे घर में फिर से हमारे मन में घर करने लगी थीं।अपने कमरे में खिड़की से आती धूप बड़ी सुखद लग रही थीं।शायद इसलिए कि ये धूप अच्छे बुरे हर वक्त में हमें रोशनी देने आती रही है,बिना थकन,बिना कोई देरी के।और अब जब कुछ पल ही रह गए हैं मुट्ठी में,तो जैसे मन कहता है कि कोई जादू की छड़ी हाथ लग जाएं और बस सब कुछ रोक दिया जाए।मां जो घर में मदद के अनेकों हाथ होने पर भी ख़ुद किसी तेज़ गाड़ी के पहिए की तरह दौड़ रहीं थीं,केश तक ना संवारे,बस जुड़े में कसकर घर के एक छोर से दूसरे को नापती जाती....या बाबा सा जो हर आने वालें को गर्मजोशी से पधरा (प्रवेश, स्वागत) रहें थें,घर के बड़ें अपने ज़माने और हमारे बचपन के किस्सों का रसास्वादन करते और फिर उन्हें याद कर नेत्रों को जलमग्न करते दिखाई पड़ते और कुमुद...ये लड़की , मां सच कहतीं हैं ,इनके पैरों में तो चक्कर है, टिकती ही नहीं....कभी क्या पहनना है,कैसे पहनना तो कभी बिदाई के समय को सोच हमसे लिपटकर खूब ही रोती,बिलखती....
आंगन में कुछ दिनों से हर शाम बन्ना बन्नी (बान गान) गाए जातें, मां ने कितने ही जतन किए कि हम आकर बैठें पर...हर गीत,और गीत के साथ उनसे(राम) जुड़ीं छेड़खानी,ब्याह के बाद के जीवन के लिए सीख, बहुत कुछ था हमारे लिए जो मन को ये आभास कराता कि... कि ये क्या कर बैठी प्रिया,ये क्या दर्द -ए -सर ले लिया है?क्या यही सब बदलाव,सबको ही महसूस होते हैं?क्या उन्हें (राम) भी डर... हुंह वें तो बिना बात के भी हम से डरने का ढोंग करतें हैं।पर मुश्किल तो कहीं ज्यादा है उनके लिए,एक अंजान के साथ अपना घर,कमरा , ज़िंदगी सांझा करनी होगी उन्हें... चाहें मन कहें या नहीं,फिर भी हमें ना नहीं कह पाने की मुश्किल,अब लगता है जो मां ने कहा था कि ये सब हम दोनों के लिए नया है,शायद... हहहा शायद अब हम वाकई एक टीम हैं, चाहें या ना चाहें पर ...हैं तो।...ये गुलाब,चंदन, जौ,हल्दी ,तेल का उबटन,सर पर मालिश...पूरा दिन महकती सी रहते हैं हम, सबकुछ हम माने या ना माने पर मन को शांत रखने में मददगार साबित हुआ हैं।बदन से उड़ती भीनी भीनी सुगंध, केशों में मेंहदी,शिकाकाई,आंवला की खुशबू,हमारे हाथ,ये इतने कोमल तो कभी नहीं थें..और चेहरे पर,ये नूर...ये नूर हमने कभी ना देखा था और ये हवेली,ये पुरानी हवेली अपनी बेटी को विदा करने के लिए फिर नई सी हो गई थीं, जैसे पुनः प्राण संचारित हुए हों।अभी कुछ दिनों पहले ही की बात है कि मां से ये कहना हो गया था कि अब बस हम और नहीं बैठ सकते घर पर,और मां टोकते हुए बोलीं कि ....

छाप तिलक सब छीनी रे....Where stories live. Discover now