सबके अपने अपने श्याम...🪔

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श्री कृष्ण का जीवन नवरसों से भरा था। सुख की वर्षा तो दुःख के घनेरे मेघ भी सदैव उनके साथ ही रहे,पर कृष्ण रुकें नहीं...मैया छूटीं,बाबा, सखापद..और छूटीं उनकी प्राणप्रिया,उनकी राधिका भी..जो राधे छूटीं,तो बंशी..जी,वही बंशी,जिसमें नारायण ने जीवन के सात सुरों को पिरोया था,जो सदा राधा नाम जाप में लीन रहती थीं।...16,108 रानियां थीं उनकी,पर एक राधा उनके भाग्य में न थीं,वो ही देवी राधा,जिनके लिए गोलोक का सुख त्याग, मृत्यु लोक का कष्ट सहने को हरि सज्ज हुए,और इस लोक ने उनसे वो संगिनी,वो राधे ही छीन ली।यदि देखें तो, श्रीकृष्ण का जीवन इतना कष्टमय था कि हम में से किसी में भी उसे जीने का संबल नहीं.. सोचिए ना,हम सब संसार में प्रेम को खोजते हैं, प्रेम करने वाले लोग ढूंढते हैं,पर कान्हा के पास तो ये सब था,फिर भी कर्म के लिए सबको छोड़,कृष्ण चल पड़ें अपरिचितों का जीवन संवारने..जहां प्रेम , मोक्ष प्राप्ति का साधन था,और बृज में तो प्रेम ही मोक्ष था।

धन्य हो कान्हा,सबको सुख देकर, सारे दुःख तुमने अपने लिए रख लिए... यशोदा मैया का आंचल छीना गया तुमसे,और नंदबाबा का हाथ..मित्रों के कंधे ना रहें और न ही राधिका के गलहार..आज तुम्हें वही सौंपती हूं कान्हा,जो तुमने सबको दिया.. निश्चल,अखंड, अथाह प्रेम..बस शाश्वत प्रेम.. राधे राधे 🪷

छाप तिलक सब छीनी रे....Where stories live. Discover now