【कुलधरा】

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धीरे - धीरे अप्रैल का महीना भी बीत गया और मई की वो तारिख भी आ गयी जिस तारिख को हम दोवारा उसी जगह पर जाने वाले थे जहाँ हम अपना सब कुछ गवाँ कर आये थे ।

08 / 05 / 2002

सुबह ही हम कुलधरा के लिए रवाना हो गए। रह रह कर वो पुराने पल न जाने क्यों मेरे मन में हलचल मचा रहे थे। रास्ते में मुझे कुलधरा में बिताया हर पल याद आ रहा था। और में काफ़ी घबराया हुआ था ।

में इसी अधेड़बुन में था कि ना जाने अब उस वीराने में हमारा क्या होगा।

पर माया पर विश्वाश पूरा था इसलिए हम उसके उपाय को ही इस वक्त सर्वोपरि मान रहे थे।

खैर काफ़ी लंबे सफ़र के बाद हम कुलधरा पहुंचे। सारी पुरानी यादें ताज़ा हो चुकी थीं। और घबराहट अपनी चरम सीमा पर खड़ी थी।

माया उस वीराने को पहली बार अनुभव कर रही थी। ना जाने क्या था वहाँ की हवा में , वहाँ के माहौल में ... और चारों तरफ फैले सन्नाटे में ... जो उस वीराने को और भी भयाभय बना देता है।

हमनें अंदर प्रवेश किया .... तो वही माहौल , वही सन्नाटा और वही आंखमिचौली भरी आवाजों को पाया और महसूस किया।

हम आगे बड़े ... और वीराने के बीचों बीच अपना टेंट बनाने में जुट गए।
इस वक्त हमे टेंट बनाने में ज्यादा दिक्कत नहीं आई .... और ना ही ज्यादा मसक्कत हुई ।

शायद दिन होने की वजह से ऐसा हुआ हो ... पता नहीं लेकिन जो भी हो .... मुझे किसी ना किसी अनहोनी का आभास हो रहा था। एक अलग ही बेचैनी मन में थी।

 मुझे किसी ना किसी अनहोनी का आभास हो रहा था। एक अलग ही बेचैनी मन में थी।

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Rohit Chourasiya

The Haunted Village #KULDHARA/indiaWhere stories live. Discover now