【उल्टे ' व ' का रहस्य】

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चलते चलते ... मेरे पैर अब जबाब दे रहे थे । गला पूरी तरह सूख चुका था ।

थोड़ी देर सुस्ताने के ख़याल से मैं .. वहीं बैठ गया । बैठते ही मैंने अपने नीचे किसी चीज को महसूस किया। मैं तुरंत उस जगह से उठा और ध्यान से देखा तो पाया कि वहाँ एक किताब पड़ी हुई है ...

" ये किताब यहाँ कैसे आ सकती है ," मैंने मन ही मन सोचा । और उस किताब को उठा लिया ...

अंधेरा होने की बजाह से उस किताब को पढ़ पाना नामुमकिन था ... तभी मुझे वो छोटी सी जलती हुई आग याद आई ( जहाँ उलटे ' व ' के निशान की आकृति को देखा गया था )

ये सोच कर कि ... वहाँ उस  आग की रौशनी में ... मैं उस किताब को पढ़ सकता हूँ । उस जलती हुई आग की दिशा में ... वापस लौटने लगा ।

कुछ ही देर बाद मैं उस जगह पर पहुँच गया ... वो आग अभी भी जल रही थी ।

लेकिन जैसे ही मैं उस आग के नजदीक पहुँचा तो पाया कि ... जो निशान मैंने देखा था ( उल्टे ' व ' का ) वो अब वहाँ नहीं था ।

मैं ( मन मैं ही ) - ' वो निशान कहाँ गया ... वो निशान सच था या आँखों का धोका ... नहीं - नहीं ... वो सच मुच में था ... अपनी आँखों से मैंने उसे देखा था .... देखा था तो गया कहाँ ।

 देखा था तो गया कहाँ ।

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ऐसे ही ना जाने ... कितने सवाल मेरे मन में उमड़ पड़े । मैं काफी हैरान था ... लेकिन जो भी हो ... मैंने वो किताब निकाली ... वो लाल रंग की किताब थी ।

" जो बात मुझे उसमे आजीब लगी वो ये थी कि ... उस किताब में कोई टाइटल ( शीर्षक ) नहीं था " ...

मैंने उसका पहला पन्ना पलटा .... वो खाली था !

फिर मैंने उस किताब का दूसरा पन्ना पलटा ... वो भी खाली था ...

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