【 Village 178 Year's Back Again 】

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रात काफ़ी गहरा चुकी थी। और चारों ओर गुप्प सन्नाटा था। गाँव 178 साल पीछे जा चुका था। अमावस की रात ... वो ही काली रात जिसने हमे इतनी बड़ी मुसीबत में डाला था , हमारे दोस्त की जान ली थी .... कैसे भुला सकते थे ... अमावस की वो रात।

शैतानी ताकतों से भरे इस वीराने में इस कदर डर पसरा हुआ था कि अब तो खुद की धड़कनों को सुनना भी दुस्वार था।

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शैतानी ताकतों से भरे इस वीराने में इस कदर डर पसरा हुआ था कि अब तो खुद की धड़कनों को सुनना भी दुस्वार था।

माया का कोई अता पता नहीं था ... और माया के बिना प्लान पूरा होना लगभग नामुमकिन था .... में यही सोच रहा था की ... तभी .... हमें एक दबी दबी सी कराहने की आवाज़ सुनाई दी।

" कोई है ...... रोहन / श्रुति बचाओ मुझे .... "

श्रुति - ' रोहन तुमने कोई आवाज सुनी क्या '

" हां ... आवाज तो मुझे भी आई थी .... " मेने कहा।

" रोहन वो देख .... वहाँ कोई लड़खड़ा रहा है ,' श्रुति दूर बने एक मकान की ओर इशारा करते हुए बोली।

 वहाँ कोई लड़खड़ा रहा है ,' श्रुति दूर बने एक मकान की ओर इशारा करते हुए बोली।

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में और श्रुति उस ओर तेज़ी से बड़े ... और जैसे ही वहाँ पहुंचे तो देखा कि वो माया थी जो काफी घायल अवस्था में पड़ी कराह रही थी।

" माया .... तुम यहाँ .... ये कैसे हुआ , किसने किया " मेने हैरानी से एक के बाद एक लगातार प्रश्नों के तीर छोड़े ।

" में जैसे ही गुस्से से टेंट के बाहर निकली तो अचानक मुझे लगा जैसे टेंट के पीछे की ओर मुझे कोई पुकार रहा है .... और यही देखने जैसे ही में पीछे मुड़ी तो एक काला साया मुझे दिखाई पड़ा और उसके बाद मुझे इसी जगह होश आया जहाँ इस वक़्त हम खड़े हुए हैं। " कराहती हुई आवाज में माया ने अपनी आपबीती हमें सुनाई ।

 और यही देखने जैसे ही में पीछे मुड़ी तो एक काला साया मुझे दिखाई पड़ा और उसके बाद मुझे इसी जगह होश आया जहाँ इस वक़्त हम खड़े हुए हैं। " कराहती हुई आवाज में माया ने अपनी आपबीती हमें सुनाई ।

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" माया जो भी हो ... अब हम पीछे नहीं हटेंगे ... काफी रात हो चुकी है , अब समय आ गया है , हमे गुरूजी की रूह को यहाँ बुलाना ही होगा .... और ये सिर्फ तुम कर सकती हो माया .... हमें किसी भी कीमत पर हारना नहीं है ... हमे लड़ना है ... अपने डर से , अपने आप से और उन ताकतों से जिन्होंने हमे अपने घर परिवार , दोस्तों से इतना दूर कर दिया कि अब दोवारा उन्हें पाना मुमकिन नहीं है " में लगभग भाबुक होते हुए बोला।

" तुम ठीक कह रहे हो रोहन .... आओ अब समय आ गया है ... अपनी सीमाओं को पार करने का । ऐसा कहते हुए माया , मैं और श्रुति उस घर की तलाश में निकले जहाँ मेरे दोस्त ने अपनी आखिरी सांसे ली थी।

 अपनी सीमाओं को पार करने का । ऐसा कहते हुए माया , मैं और श्रुति उस घर की तलाश में निकले जहाँ मेरे दोस्त ने अपनी आखिरी सांसे ली थी।

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                   Rohit Chourasiya

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