【मेरा बचपन】

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न फिकर थी सोने की ,
न फिकर थी खाने की ,
न परवाह ज़माने की , और
न ही फिकर कमाने की ।

वो बचपन भी बड़ा याद आता है ,
जब लड़ते थे , झगड़ते थे ,
रूठते थे , मनाते थे ,
हँसते थे , हंसाते थे ,रोते थे ,चिल्लाते थे ।

समय का मायाजाल ये कैसा ,
बीत गए वो सारे दिन।

दिनचर्या में उलझे हैं ,
हाय हेल्लो में मिलते हैं ,
फिर अपने रस्ते चलते है ,
न मस्ती है , न मजा है ,
ये जिंदगी मानो एक सजा है।

चाहत है ,

फिर में एक बच्चा बन जाऊँ ,
अपनी ही धुन में रंग जाऊँ ,
खुद को हंसाऊँ , खुद को रुलाऊँ ,
खुद पर चीखूँ , खुद पर चिल्लाऊँ ,

काश ! फिर में एक बच्चा बन जाऊँ ।

Rohit chourasiya

【Rohit chourasiya】

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