【मेरा बचपन - 2】

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बैठा था इक दिन यूँ ही ,
सोच रहा था कुछ भी ,
तो याद आया वो बचपन , वो सपनों का गुलशन !

वो अपना याराना ,वो गुमनाम जवानी ,
वो मिट्टी के चूल्हे , वो ईंटे पुरानी !

वो मक्के की रोटी , वो छोटी कहानी ,
वो लकड़ी के झूले , वो बूढ़ी सी नानी !

आते है याद , वो सारे खेल , जो हमने थे खेले ,
वो आमों के ठेले , वो बचपन के मेले !

वो छुपन - छुपाई , वो पकड़म - पकड़ाई ,
चोर - पुलिस की थी वो लड़ाई !

जिंदगी के दो पल , जिए थे उस 'बचपन ' में ,
कहाँ मिलेंगे अब वो पल इस 'पचपन ' में !

चलो छोड़ो जाने दो , अब इन यादों को ,
भूल जाओ उन बीते हुए , गुजरे जमानों को !


【 Rohit Chourasiya 】

                                    【 Rohit Chourasiya 】

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