मुसाफिर

969 57 21
                                    

हम मुसाफिर हैं इस दिल में तेरी तस्वीर ही सही,
तु नहीं हैं तो क्या हुआ यह मेरी तक़दीर ही सही!

तसव्वुर में आईने पर लिखी हुई तह़रीर ही सही,
कोरे काग़ज़ से मिलीं पहचान ए मुसव्वीर ही सही!

मेरी दीवानगी पे जमाने से मिलीं तद़बीर ही सही,
तनहा शायर के लिये ईज्ज़त ए महफ़िल ही सही!

हर वक्त़ तुमने ना देखा यह आईना हर्गिज़ ही सही,
हम मग़र गले लगा भी न सके यह तरक़ीब ही सही!

आये हो मिलने बेज़ुबान से यहाँ तशरीफ़ ही सही,
ख़ुद के हालात पे कर के परदा मुख़बिर ही सही!

झ़ील वह मोहब्बत ही क्या जो तक़लीफ़ ही नही,
जमाने में थोड़े क़म थे एक और मुख़ालिफ़ ही सही!

अक़्स Where stories live. Discover now