आ गया है जिंदगी में वह दुवा बन कर,
रह गया है ख़यालों में वह हया बन कर!उनकी मुलाक़ात और वह सारी शर्तें,
रह गयीं है जुबांन पे वह ख़ुदा बन कर!जो बीत गया सो बीत चुका है मगर,
रह गया हैं किस्सा पुराना नया बन कर!दिल ए बिमार है सँभलना मुश्किल है,
रह गया है जख़्म पे सिर्फ़ दवा बन कर!भूल जाना उसे भी मुमकिन न हुआ,
गया जहाँ भी मैं मिला साँया बन कर!खुबसूरत है वह एक खुशबु है जैसे,
रह गया है सांसों में वह हवा बन कर!कभी ख़ामोशी में खुलती हैं मेरी आँखें,
बंद कर लूँ तो आता है वह चाँद बन कर!झ़ील
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...