माँ

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मेरी ऊँगलियाँ पकड़ कर मुझे फ़िर चलना सीखा दे,
छुपा लेना आँचल में पहलें फ़िर सँभलना सीखा दे!

ग़म ही ग़म है शहर में हाथों में तेरी फ़िर भी नमीं है,
चला लेना लाठियाँ जितनी फ़िर मुस्कुराना सीखा दे!

तेरे हाथों की वह रोटीयाँ अब तक जुबांन पे हैं मेरी,
छुपा देना आचार कहीं फ़िर नज़र मिलाना सीखा दे!

हमने हर कदम ज़माने को आपस में लड़ते देखा है,
दरवाजे पे सुना देना सब कुछ फ़िर ठ़हरना सीखा दे!

रोने दो मुझे अब की बार आँसु ओं को भी बहने दो,
जीत जाऊँ मैं दुनिया अगर तो फ़िर बुलाना सीखा दे!


अक़्स Where stories live. Discover now