दुर बैठा हैं वह जैसे कोई मेहमान है,
देखता हैं वह जैसे कोई अन्जान है!आ रहा था जब मेरी जैसे कोई जान है,
हाथों में फूल जैसे कोई मेहरबान है!हर बात यूँ जुबान पर ठहर जाती हैं,
लाखों में एक जैसे कोई गुनवाण है!दिल ही नहीं जालीम ने नींद चुराई है,
आँखें लड़ाता है जैसे कोई नादान है!दोस्तों में सजाता है हर नई महफिले,
जान लुटाता है जैसे कोई धनवान है!जब वह निकलता है इस अन्जुमन से,
मुस्कुराता है वह जैसे कोई ईमान है!याद है अब तक वह पहली मुलाकातें,
धूप में बरसता हुआ जैसे कोई सावन है!चलतें चलतें क़दम इस कदर लडखडातें है,
बाजार का हाथों में जैसे कोई सामान है!
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...