यह मेरा ग़म भी कहीं ग़ज़ल ना बन जाए
यह मुसाफ़िर कहीं आवारा ना बन जाएकौन कहता है सारे जहाँ को मालूम नहीं,
ख़बर नई तो नहीं जो दोहराता है हर कोई,
इश्तिहारों का कहीं क़हर ना बन जाए!उसे भी है जरूर अपनी बेवफाई पे ख़ता,
कोई ऐसे तो नहीं पूछता किसी का पता,
किसी जुर्म का कहीं आधार ना बन जाए!हमने देखा है चाँदनी की हर एक रातों में,
चाँद वह हँसता हुआ मसरूफ़ है बातों में,
यह सियाही कहीं तलवार ना बन जाए!
YOU ARE READING
अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...