जज्बात ए मोहब्बत

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ज़ज़्बात ए मोहब्बत न होती आरजू कहाँ होती,
इश्क़ ए बाजार में बताइये तराजू कहाँ होती!

न हिन्दू न मुसलमान ना ग़ैरो में लडाई होती,
हिन्दुस्तान की सर जमीन पे शरयू कहाँ होती!

यह मेरा यह तेरा भाई चारा बँटवारा न होता,
मर्जी के मुताबिक यहाँ दस्तूर ए कहाँ होता!

यह देश तेरा या के मेरा फैसला कौन सुनायें,
आता न था तु चल कर अगर हरसू कहाँ होती!

झ़ील

जज्बात = emotions
हरसू = मुल original
दस्तूर = व्यवहार
बहर

अक़्स Where stories live. Discover now