ज़ज़्बात ए मोहब्बत न होती आरजू कहाँ होती,
इश्क़ ए बाजार में बताइये तराजू कहाँ होती!न हिन्दू न मुसलमान ना ग़ैरो में लडाई होती,
हिन्दुस्तान की सर जमीन पे शरयू कहाँ होती!यह मेरा यह तेरा भाई चारा बँटवारा न होता,
मर्जी के मुताबिक यहाँ दस्तूर ए कहाँ होता!यह देश तेरा या के मेरा फैसला कौन सुनायें,
आता न था तु चल कर अगर हरसू कहाँ होती!झ़ील
जज्बात = emotions
हरसू = मुल original
दस्तूर = व्यवहार
बहर
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अक़्स
General Fictionwinner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...