जब साथ मिलाये उसने कदम आहिस्ता आहिस्ता,
धूप में यूँ बरसे बादल जैसे कोई फरिश्ता!दीवाना बन जाऊँगा कभी यह मुझे खबर तो न थी,
बढाया था हाथ उसने जैसे कोई वाबस्ता!समझते रहें हम जिसे मंजिल जान वही ख़रीद बैठे,
शाम सुहानी लिए रह गया जैसे कोई तरसता!एक शीश महल है वह जैसा दुनिया में न कोई दुसरा,
वह सामने जुदा हुआ और देखता रहा हँसता!वाबस्ता वाबस्ता = जुडा हुआ,
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अक़्स
一般小說winner of "Popular Choice Awards India 2019". in ** ( Poetry: Hindi )** "अक़्स" "REFLECTION" चला जाता हूँ जहाँ जहाँ तेरा अक़्स दिखाई देता है, छुपा लूँ जमाने से मैं कितना भी जख़्म दिखाई देता है! हम अपने दोस्तों को मिलनें चलें जाये क्यूँ बताओं...