आहिस्ता आहिस्ता

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जब साथ मिलाये उसने कदम आहिस्ता आहिस्ता,
धूप में यूँ बरसे बादल जैसे कोई फरिश्ता!

दीवाना बन जाऊँगा कभी यह मुझे खबर तो न थी,
बढाया था हाथ उसने जैसे कोई वाबस्ता!

समझते रहें हम जिसे मंजिल जान वही ख़रीद बैठे,
शाम सुहानी लिए रह गया जैसे कोई तरसता!

एक शीश महल है वह जैसा दुनिया में न कोई दुसरा,
वह सामने जुदा हुआ और देखता रहा हँसता!

वाबस्ता वाबस्ता = जुडा हुआ,

अक़्स Where stories live. Discover now