15 | ट्रेन का सफ़र

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घरवालों ने हिदायतों से लैस करके नवीन को ट्रेन में बिठा अलविदा कहा। जैसे ही ट्रेन प्लॅटफॉर्म से छूटी, नवीन के चेहरे पर मुस्कान छा गयी। पहली बार वह ट्रेन में अकेला सफ़र कर रहा था और रास्ता भी काफ़ी लंबा था।

उसने अपने कंपार्टमेंट में नज़रें घुमाई तो देखा की एक सुंदर लड़की एक किताब पढ़ रही थी। किताब श्रीमान रसकिन बॉन्ड की थी पर उसका ध्यान तो लड़की पर था। उसकी मोटी एनक, तिरछी नाक, और टमाटर जैसे गालों को देख वह काफ़ी आकर्षित हुआ। मन ने तुरंत कहा की बात कर लेनी चाहिए लेकिन दिमाग़ ने रोक लिया।

सोचा की कहेगा क्या ? ना जान ना पहचान, कहीं कुछ उल्टा सीधा मुँह से निकल गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे। कुछ ही देर में नवीन असमंजस के सागर में इस तरह डूबा की सर से पसीने टपकने लगे। गला सुख गया।

लड़की ने उसकी ओर देखा तो शायद उसे लगा की तबीयत ठीक नहीं हैं तो बड़े भोले से अंदाज़ में पानी के लिए पूछ लिया। वह मना न कर सका और उसकी बॉटल से पानी पी लिया और तुरंत ही लौटा दी और चुपचाप खिड़की से बाहर देखने लगा।

कुछ देर बाद उसे लगा की धन्यवाद कहना चाहिए। इसी बहाने बात तो शुरू होगी। क्या पता वह भी मद्रास ही जा रही हो। अगर जा रही है तो फिर 2-3 दिन का सफ़र आसानी से कट जाएगा। आख़िर एक बार बात शुरू हो जाए तो फिर रुकती थोड़ी न है।

वह उसकी ओर घुमा और बड़ी अदब से शुक्रिया कहा। एक दो बात पूछ ली। उस ओर से ठीक जवाब आ गये तो थोड़ी हिम्मत बढ़ी। कुछ ही देर में दोनों बातों में मशगूल हो गये। बचपन की बातें होने लगी। बचपन से स्कूल, स्कूल से हॉस्टिल, हॉस्टिल से सिनेमा, सब लपेटे में आ गये।

घर से लाए हुए लड्डू और कतली पेश किए गये। स्टेशन की चाय की चुस्की ली गयी। थोड़ा सा प्लॅटफॉर्म पर टहलना भी हो गया। फिर बातें थोड़ी पर्सनल होने लगी। दिल की दस्ताने और क़िस्से-कारनामे सामने आने लगे। ऐसा लगने लगा की एक दूसरे को काफ़ी समझते हैं।

झिझक गायब हो गयी थी और दोस्ती की ओर हाथ बढ़ गये थे। ट्रेन के बाद मिलने का प्लान बन गया। मिलकर कौनसी फिल्म साथ देखनी है यह भी तय हो गया। हरी भरी वादियाँ आने लगी तो तय हुआ की साथ में गाना सुन लिया जाए। गाना सुनते सुनते लगा की जैसे आमिर और जूही की तरह यह दोनो भी घर से भागे हैं। इस बात पर काफ़ी देर तक हँसी बरकरार रही।

क़यामत से क़यामत तक फिल्म में अब मुख्य किरदारों की जगह उन दोनो ने ले ली थी। ट्रेन बेफ़िक्र चलती रही और फ़ासले कम होते गये। ध्यान से सोचा जाए तो प्यार का कोई वक़्त नहीं होता। वह ट्रेन में भी हो सकता है। चूँकि इस संभावना पर दोनो की सहमति थी तो फिर इज़हार भी हो गया। उस ओर से भी हाँ हो गयी।

नवीन को वह पसंद आ गयी और उसको नवीन। भला किसी को इस बात से क्या तक़लीफ़ हो सकती है। दोनो की जोड़ी भी खूब जचती थी। घरवालों से बात करके शादी फिक्स हो जाएगी। बाकी लेन देन की बात घरवाले संभाले।

कुछ देर बाद यह भी तय हो गया की अगर लड़का हुआ तो अरमान और लड़की हुई तो कविता नाम रखे जाएँगे। दोनो के चेहरों पर हल्की मुस्कान थी और इससे पहले की नवीन कुछ और कहता अचानक से टनल आ गया। ऐसा अंधकार छाया की एक बार के लिए तो दिल बैठ गया। कुछ ही देर में रोशनी हुई और फिर से श्रीमान रसकिन बॉन्ड की किताब के दर्शन हुए।

वह भी वहीं बैठी थी और उसकी ओर देख मुस्कुरा रही थी। फिर अगले ही पल वह फिर से बॉन्ड की कहानी में डूब गयी। नवीन को यकीन ही नही हुआ की क्या हुआ लेकिन फिर अचानक से हो गया।

नवीन ने धीरे से उसकी ओर बढ़ते हुए एक हल्की मुस्कान के साथ उससे कहा...

...पानी के लिए शुक्रिया!

देख तमाशा: लघु कथाओं का संग्रहWhere stories live. Discover now