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मैं इतवार को बुद्धिजीवियों से नहीं मिलता! मेरी राय में उन्हें बेरोज़गारों का संडे खराब करने का दुर्लभ हुनर हासिल है।
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बेरोज़गारी का दौर अक्सर सरदर्द से शुरू और मोटापे पर ख़त्म होता दिखाई पड़ता है। क्योंकि मोटापा अपने आप में एक सरदर्द है और बेरोजगारी को भुलाने का टॉनिक भी।
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बेरोजगारी में इश्क़ साथ निभाने के नहीं उधार चुकाने के काम आता है और एक खुफिया रिपोर्ट की माने तो वह इश्क़ एक से नहीं बहुतों से प्यार की निशानियाँ माँग रहा होता है।
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देख तमाशा: लघु कथाओं का संग्रह
Nouvellesरचना - देख तमाशा लेखक - आशुतोष मिश्रा देख तमाशा दरअसल दिल की डाइयरी जैसी है! जो अच्छा लगा, लिख दिया! ज़्यादा कुछ सोचा नहीं! यहाँ आपको लघु कथायें, विचार, कुछ कवितायें, कुछ गुदगुदाती बातचीत, कुछ अजीबोगरीब किस्से मिल सकते हैं! आशा है आपको यह सं...