जनता और सरकार
चैन से सोती जनता
जनता होने का हक़
खोती जनता
अधिकारों की आहुति देती
आँखों पर पट्टी बाँधे
चुपचाप सिसकती
बेबुनियाद बेपरवाह बेबस
बिखरती जनता
मंद मंद मुस्काती सरकार,
बिखरी जनता को नोचती
उनको आपस में लड़ाती
मुद्दो को आग लगाती
विद्रोह को रोज मिटाती
लालची निर्लज बड़बोली
सरकार
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